उपग्रह संचार
प्रिय मित्रों एवं विद्यार्थियों आज हम जिस विषय के बारे में चर्चा करने जा रहे हैं वह विषय हम सबके दैनिक जीवन से जुड़ा हुआ है। आज का विषय रोचक तो है ही साथ ही आप सबके लिए अत्यंत ज्ञानवर्धक होने वाला है आप सबको वो दिन जरूर याद होंगे जब टीवी पर क्रिकेट मैच देखने के लिए या अपना फेवरेट धारावाहिक देखने के लिए आप अपने सहयोगी को टीवी एंटीना के पास उसे हिलाने डुलाने के लिए रिजर्व रखते थे क्योंकि वह सिग्नल आया और गया वाला दौर था। उस समय टेलीविजन सिगनलों का संचरण ऊंचा अभिग्राही एंटीना प्रयुक्त करके किया जाता था और उसकी अपनी निश्चित क्षमता होती थी। क्योंकि उस विधि मे टेलीविजन सिग्नल को प्रेषित एंटीना से सीधे अभीग्राही एंटीना पर भेजा जाता था और प्रेषित एंटीना की ऊंचाई प्रसारण दूरी पर निर्भर करती थी प्रसारण दूरी जितनी अधिक होती थी प्रेषित्र एंटीना की ऊंचाई भी उतनी ही अधिक रखनी पड़ती थी। परंतु आज संचार उपग्रहों की देन से डिश एंटीना छतरी इस झंझट से मुक्ति दे चुका है इतना ही नहीं संचार उपग्रहों की वजह से आज इंटरनेट बहुत ही उन्नत हो गया है, तो आइए इसे विस्तार से समझते हैं।
संचार उपग्रह क्या है ?
जब बहुत अधिक दूरी तक संचार करना हो तब दूरसंचार के प्रयोजनों जैसे टेलीविजन तरंगों वह माइक्रो तरंगों के संचरण के लिए मानव निर्मित उपग्रहों का प्रयोग किया जाता है इन कृत्रिम उपग्रहों को संचार उपग्रह कहते हैं। इस प्रणाली को प्रायः सेटकॉम(SATCOM) तकनीक के नाम से भी जाना जाता है।
संचार उपग्रह कैसे काम करते हैं?
उपग्रह के माध्यम से संचार करने के लिए एक कृत्रिम उपग्रह को पृथ्वी तल से लगभग 36000 किलोमीटर की ऊंचाई पर भूमध्य रेखीय तल में वृत्तीय कक्षा में एक राकेट के माध्यम से स्थापित किया जाता है। इस कक्षा में कृत्रिम उपग्रह का पृथ्वी के परितः आवर्तकाल 24 घंटे होता है जो कि पृथ्वी की अपनी कक्षा के परितः चक्रण गति के आवर्तकाल के बराबर है।
क्या आपने कभी सोचा है कि हमारी पृथ्वी तो घूम रही है परंतु हमारा डिश एंटीना सदैव एक निश्चित दिशा की ओर घूमा रहता है। ऐसे में हमारे एंटीना का संचार उपग्रह से संबंध एक समय के बाद विचलित हो जाना चाहिए जैसा कि सूर्य और चंद्रमा के साथ होता है वह सदैव निश्चित दिशा में हमारे सामने नहीं रहते। ऐसा इसलिए संभव हो पाता है क्योंकि संचार उपग्रह भू स्थाई या तुल्यकाली होते हैं यानी कि वह पृथ्वी के साथ साथ समान आवर्तकाल और समान दिशा में घूर्णन करते है अतः वह पृथ्वी पर स्थित व्यक्ति को सदैव स्थिर प्रतीत होते हैं।
संचार उपग्रह की कक्षीय चाल-
उपग्रह की पृथ्वी तल से ऊंचाई h = 36000km
उपग्रह की कक्षा की त्रिज्या r = R+h
(जहां R = 6400km, earth radius)
r = 6400+3600
r = 42400km
r = 4.24×10⁷m
उपग्रह का अवर्तकाल T = 24 H = 86400sec.
अतः उपग्रह की कक्षीय चाल v = 2πr/T
v= [{2×3.14×(4.24×10⁷)}/86400]
v= 3.1×10³m/s
संचार उपग्रह कितने प्रकार के होते हैं?
संचार उपग्रह प्रायः दो प्रकार के होते हैं–
- निष्क्रिय संचार उपग्रह (Passive communication satellite)
- सक्रिय संचार उपग्रह (Active comunication satellite)
(1) निष्क्रिय संचार उपग्रह- ये उपग्रह प्रेषित्र से आने वाले सिग्नल को ठीक वैसे का वैसा ही परिवर्तित करके पृथ्वी की ओर वापस भेज देते हैं।
(2) सक्रिय संचार उपग्रह- ये उपग्रह पृथ्वी से प्राप्त सिग्नल को एंटीना द्वारा अभिगृहीत कर के प्रवर्धक द्वारा उसे प्रवर्धित करके पृथ्वी पर वापस भेजते हैं। इस प्रकार इन उपग्रहों में अनेक विद्युत संयंत्र जैसे एंटीना, पावर सप्लाई, अभीग्राही, प्रवर्धक आदि लगे रहते हैं जिन्हें प्रेषानुकर (transponder) कहते हैं।
पृथ्वी पर स्थित प्रेषित्र से वीडियो (दृश्य) अथवा ऑडियो (श्रव्य) सिग्नल को गीगाहर्टज आवृत्ति की माइक्रो तरंगो; से आवृत्ति माडुलित कर के कृत्रिम उपग्रह पर भेजा जाता है। उपग्रह में लगे प्रेषानुकर इन्हें उन्हीं आवृत्तियों में या उनकी आवृत्ति बदल कर भिन्न भिन्न दिशाओं मे प्रसारित करते हैं। तत्पश्चात ये सिग्नल पृथ्वी के विभिन्न भागों में स्थित अभिग्राही द्वारा प्राप्त कर लिए जाते हैं। चूंकि उपग्रह से प्राप्त ये सिग्नल अत्यधिक क्षीण होते हैं अतः इन्हें पृथ्वी पर पुनः प्रवर्धित कर लिया जाता है। अंतर महाद्वीपीय दूरसंचार के लिए दो या दो से अधिक संचार उपग्रहों का उपयोग किया जा सकता है।आजकल लगभग सभी देशों द्वारा उपग्रह स्थापित किए जा चुके हैं भारत में लगभग तीन दशक पूर्व से ही INSAT-IB तथा INSAT-2A उपग्रहों का उपयोग दूरदर्शन कार्यक्रमों को पूरे देश में प्रसारित करने के लिए किया जा रहा है। वर्तमान में कई स्वदेशी उपग्रह इस क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं। अब नए छोटे छोटे नैनो उपग्रह स्थापित करके प्रत्येक गांव में संचार व्यवस्था स्थापित करने की योजना भी बनाई जा रही है।
संचार उपग्रह से क्या लाभ हैं?
- चूंकी संचार उपग्रह भू स्थाई होता है अतः पृथ्वी तल पर प्रेषित एंटीना तथा अभी ग्राही एंटीना का अभिविन्यास नियत रहता है।
- चूंकि वाहक तरंगों की आवृत्ति बहुत अधिक (≈10⁹-10¹¹ Hz) है अतः प्रेषित एंटीना की आवश्यक लंबाई बहुत अधिक नहीं रखनी होती है तथा आयन मंडल द्वारा इन तरंगों को अवशोषित भी नहीं किया जाता है या अवशोषण लगभग नगण्य होता है।
- संचार उपग्रह से वापस भेजी गई तरंगे पृथ्वी तल के लगभग आधे क्षेत्रफल द्वारा अभिगृहीत की जा सकती हैं।
- संचार उपग्रह से प्रसारित संदेश की विश्वसनीयता बनी रहती है।
संचार उपग्रह का दोष-
हालां कि इस विधि का कोई दोष नहीं है परंतु फिर एक दोष यह निकाला जा सकता है कि यह प्रणाली अत्यंत महंगी है।
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