समय
प्रिय मित्रों आज हम ने ब्लॉग पर विचार रखने के लिए एक ऐसे विषय को चुना है जिसका संबंध न सिर्फ मुझसे आपसे है बल्कि इसका संबंध ब्रह्मांड के हर एक पार्टिकल से है जी हां आप ठीक समझ रहे हैं इसका संबंध पृथ्वी सूर्य या हमारे सौरमंडल मात्र से ना होकर हमारी गैलेक्सी के बाहर स्थित अन्य गैलेक्सी व सतत विस्तारित हो रहे इस अनंत ब्रह्मांड से भी है अब तक आप समझ गए होंगे कि आज मैं सर्वत्र व्याप्त समय की बात करने वाला हूं।
महाभारत सीरियल का एक अदृश्य पात्र (मै समय हूँ) तो आप सब को याद ही होगा कहते हैं हैं नेपोलियन ने आस्ट्रिया को इसलिए हरा दिया कि वहाँ के सैनिकों ने चंद मिनटों का विलंब कर दिया था, लेकिन वहीं कुछ ही मिनटो में नेपोलियन बंदी बना लिया गया क्योंकि उसका एक सेनापति कुछ समय विलंब से आया।
प्राचीन काल में जब घड़ी का आविष्कार नहीं हुआ था तब मनुष्य ने समय की कल्पना सूर्य को देखकर की होगी जिससे हमारे बीच प्रातः दोपहर तथा संध्या रात्रि जैसे शब्द आए। तथा उसने ऋतु परिवर्तन को देखकर महीना या वर्ष की परिकल्पना की तत्पश्चात शंकु यंत्रों तथा धूप घड़ियों का आविष्कार हुआ तथा आज भी हमारी दादी नानी रात्रि में नक्षत्रों को देखकर समय का सटीक अनुमान लगा लेती है। भारत में विभिन्न प्राचीन ज्योतिष ग्रंथों जैसे पंच सिद्धांतिका तथा सूर्य सिद्धांतिका में पानी तथा बालू के घटी यंत्रों का वर्णन मिलता है इन यंत्रों में एक पात्र लिया जाता था तथा इसमें छोटा सा छेद करके उसमें पानी या बालू भर दिया जाता था तथा इन पात्रों से बालू या पानी गिरने के समय को विभिन्न अंतराल में बांट दिया जाता था इस प्रकार विज्ञान के प्रादुर्भाव के साथ नवीन आधुनिक घड़ियों का आविष्कार हुआ तथा समय के मापन को शुद्ध और सटीक बनाया गया परंतु आज हम समय की बात करने वाले हैं ना कि समय के मापन की
जी हां हम अपने लेख को आगे बढ़ाएं इससे पहले आप निम्नलिखित प्रश्नों पर विचार कर ले
- समय क्या है ?
- समय की उत्पत्ति कैसे होती है ?
- गुरुत्वाकर्षण और गति से समय का क्या संबंध है ?
- क्या समय मंद या तेज हो सकता है ?
- क्या संपूर्ण ब्रह्मांड में समय की गति एक समान है ?
हालांकि उपरोक्त सभी प्रश्न कहीं ना कहीं अनसुलझे हैं परंतु आइए इस प्रश्न पर विचार करते हुए की समय क्या है? सभी प्रश्नों को छूने का प्रयास करते हैं :-
भौतिक विज्ञानी पाल डेविस कहते हैं कि "समय" आइंस्टीन की अधूरी क्रांति है तथा अरस्तु का दर्शन कहता है कि "समय गति का प्रभाव हो सकता है लेकिन गतियां तेज या धीमी हो सकती है परंतु समय नहीं" मैकटेगार्ट का दर्शन कहता है कि समय का गुजरना मानव मस्तिष्क का भ्रम मात्र है केवल वर्तमान ही सत्य है आइए मैकटेगार्ट द्वारा दी गई समय के विश्लेषण की ए,बी,सी श्रृंखला जानते हैं
समय के पहले और बाद के पहलू मूल रूप से समय के तीर (एरो आफ टाइम) के रूप में ही हैं जैसे किसी व्यक्ति का जन्म उसकी मृत्यु से पहले ही होगा भले ही दोनों घटनाएं सुदूर अतीत का हिस्सा हैं यह एक निश्चित संबंध है यही कारण है कि मैंगटेगार्ट कहते हैं कि कहीं कुछ समय से भी ज्यादा मौलिक होना चाहिए
समय के भूत वर्तमान भविष्य के पहलू सतत परिवर्तनशील हैं भविष्य की घटनाएं वर्तमान से होते हुए भूत में चली जाती हैं यह समय प्रवाह का अनुभव कराता है यह सतत परिवर्तनशील संबंध समय की व्याख्या के लिए आवश्यक है मैगटेगार्ट का अनुभव कहता है कि समय वास्तविक नहीं है केवल भ्रम मात्र है क्यों की भूत वर्तमान और भविष्य के मध्य का अंतर समय के लिए पहले और बाद के स्थाई संबंध की तुलना में ज्यादा आवश्यक है
मैकटेगार्ट का एक महत्वपूर्ण तर्क यह था कि वास्तविक घटनाओं तथा मानवरचित कहानीयों मे समय के गुण एक जैसे होते है। उदाहरण के लिये मानवरचित कहानीयों तथा भूतकाल की वास्तविक घटनाओं की तुलना करने पर, दोनो मे पूर्व और पश्चात के साथ तीनों काल भूत, वर्तमान तथा भविष्य होता है जो यह दर्शाता है कि भूतकाल घटनाओं की स्मृति मात्र है तथा लेखक की कल्पना के अतिरिक्त उसका अस्तित्व नही है। यदि हम कंप्युटर की मेमोरी उपकरण जैसे हार्डडीस्क मे संचित भूत, वर्तमान और भविष्य के बारे मे सोचें तो यह कुछ स्पष्ट हो जाता है।
वर्तमान क्या है?
वर्तमान समय की सबसे ज्यादा वास्तविक धारणा है, लेकिन हम जिसे वर्तमान के रूप मे देखते है वास्तव मे वह पहले ही भूतकाल हो चुका होता है। वर्तमान अत्यंत क्षणभंगुर है, जो कुछ भी वर्तमान मे घटित हो रहा है वह समय रेखा मे एक अत्यंत सूक्ष्म बिंदु पर सीमित है और उस पर सतत रूप से लगातार भूत और भविष्य का कब्जा हो रहा है।
उदाहरण के लिए वर्तमान किसी कम्प्यूटर मे चल रहे किसी चलचित्र वीडियो का वह तीक्ष्ण लेजर बिंदु है जो अत्यंत शूक्ष्म समय के लिए स्क्रीन पर टिकता है तथा भूतकाल मे चला जाता है तथा उस वीडियो का नही देखा गया आने वाला दृश्य भविश्य को इंगित करता है नीचे चित्र मे श्पष्ट है की चलचित्र में समय दिखाने वाली रेखा का रंगीन भाग भूतकाल है जबकि बिना रंगीन भाग भविष्य काल तथा इन दोनों के बीच का संक्रमण पॉइंट अत्यंत सूक्ष्म बिंदु वर्तमान काल को प्रदर्शित करता है जो बहुत तीब्र भूतकाल में चला जाएगा
वर्तमान हमारे मस्तिष्क मे संचित स्मृति की मानसिक जागरुकता होती है। जैसे कोई व्यक्ति किसी सेमीनार मे जाकर यदि सो जाये तो वह उस घटना को पूरी तरह से भूल जाता है। अब उस घटना का उसके भूतकाल मे अस्तित्व नही होगा। यदि हम किसी घटना के प्रति चेतन न हो तो वह हमारे भूतकाल की स्मृति का भाग नही बनती है। अतः वर्तमान ही आगे चलकर भूतकाल में बदल जाता है परंतु वर्तमान इतना क्षणभंगुर है कि जब तक हम उसके बारे में सोच पाते हैं तब तक वह भूतकाल में परिवर्तित हो चुका होता है
समय की वास्तविकता:-
समय एक आकस्मिक अवधारणा है। वह हमारे आस पास लगातार परिवर्तित होने वाली वास्तविक घटना है। समय को समझने के लिये हमे इस सतत परिवर्तन को निर्मित करने वाली प्रक्रिया को जानना होगा जिससे जीवन मे समय का भ्रम उत्पन्न होता है। समय गति के कारण ही दृष्टिगोचर होता है और उसका मापन अन्य गति से तुलना के द्वारा होता है।, रात और दिन, बदलते मौसम, पिंडो की गति यह सभी सतत परिवर्तन के साक्ष्य हैं। हमारी उम्र बढ़ने की प्रक्रिया तथा आण्विक गति तथा अन्य प्रकृया भी गति का प्रभाव है और समय का ही हिस्सा है। इसके अतिरिक्त समय कि उपस्थिति का एक महत्वपूर्ण पहलू फोटान और परमाण्विक स्तर पर कणो की गति भी है।
आइए समय के साथ गति और गुरुत्वाकर्षण के संबंध को समझने के लिए एक मानसिक प्रयोग करते हैं मान लेते हैं कि एक वायुयान पृथ्वी की सतह से 5 किलोमीटर ऊपर हवा में गति कर रहा है तथा एक यात्री ऊपर से छलांग लगाता है यात्री के छलांग लगाने के बाद पृथ्वी और उसके आसपास का समय धीमा हो जाता है अब चूंकि समय धीमा हो चुका है अतः यात्री धीमी गति से पृथ्वी की ओर गिरेगा अतः व्यवहार में पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण भी कमजोर पड़ चुका होगा अब मानते हैं कि अचानक समय शून्य हो जाता है ऐसी स्थिति में यात्री उसी क्षण अपनी वर्तमान स्थिति में स्थिर हो गया होगा अतः व्यवहार में पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण भी शून्य हो गया होगा यहां हम देखते हैं कि समय के शून्य हो जाने पर गुरुत्वाकर्षण तथा गति दोनों ही शून्य हो जाते हैं
गुरुत्वाकर्षण बल की क्षमता मे वृद्धी या कमी केवल हमारे निरीक्षण बिंदु के निश्चित समय से संबंधित है। (जिसका मतलब है कि हम इस घटना को पृथ्वी और उसके समय क्षेत्र से दूर खड़े होकर ही देख पाएंगे) वायुयान और पृथ्वी के समय के परिपेक्ष मे ना तो उनकी गति मे परिवर्तन हुआ है ना उनके गुरुत्वाकर्षण मे। इस मानसिक प्रयोग को विद्युत-चुंबकीय बल द्वारा बांधे गये कणो पर भी किया जा सकता है, तब हम कह सकते है कि समय बल और गति दोनो का समावेशन करता हैं।
समय की संभावित परिभाषा:-
समय को एक से अधिक परिपेक्ष्य मे परिभाषित कर सकते है। जैसे ज्ञान के परिपेक्ष्य मे समय हमारे मस्तिष्क द्वारा निर्मित एक आकस्मिक अवधारणा है। वर्तमान हमारी चेतना या हमारी स्मृति मे घटनाओ के लेखन की जानकारी है। भूतकाल स्मृति है जबकि भविष्य का अस्तित्व नही है। तथा भौतिकशास्त्र के परिपेक्ष्य मे, समय ब्रह्मांड मे गति और बलो की उपस्थिती है।
गुरुत्वाकर्षण और गति को ध्यान में रखते हुए संभवत आपने समय के धीमे या तेज होने को समझ लिया होगा हिंदू धर्म ग्रंथों में भी अंतरिक्ष में स्थित दो भिन्न भिन्न पिंडो मे भिन्न भिन्न समय का उल्लेख मिलता है पुराणों की माने तो 14 मन्वंतर बराबर एक ब्रह्म दिवस होता है अतः यदि गणना की जाए तो एक ब्रह्म दिवस बराबर 4294080000 वर्ष इसका अर्थ है कि जब हमारी पृथ्वी में 4294080000 वर्ष बीत चुकेंगे तब ब्रह्मलोक में सिर्फ 12 घंटे बीते हुए होंगे इसी प्रकार विष्णुलोक मे मी समय भिन्न बताया जाता है अब आइए मन में एक प्रयोग करते हैं मानते हैं कि हमारे पास एक अत्याधुनिक विमान है जिसमें बैठकर हम ब्रह्मलोक पहुंच गए अब यदि हम ब्रह्मलोक में 1 हफ्ते का समय गुजार कर तत्पश्चात अपनी पृथ्वी पर वापस आए तब हम देखेंगे कि यहां सब कुछ बदल चुका है और पृथ्वी के अत्याधुनिक उन्नत इंसान हमें पहचानने से इंकार कर रहे हैं क्योंकि तब तक यहां लगभग 60117120000 वर्ष बीत चुके हैं परंतु आपकी उम्र में सिर्फ 7 दिन का इजाफा हुआ है।
उम्मीद करता हूं की जानकारी आपको अच्छी लगी होगी पाठ्य को लिखते समय भाषा की सरलता को ध्यान में रखा गया है अतः सम्भव है की कुछ वैज्ञानिक भाव शामिल नहीं हो पाए हों इसका अगला भाग देखें समय यात्रा मे
धन्यवाद!
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