विद्युत-चुम्बकीय स्पेक्ट्रम (Electromagnetic spectrum)

 विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम


सर्वप्रथम विद्युत चुंबकीय तरंगों की खोज वैज्ञानिक हर्ट्ज के प्रयोगों के द्वारा हुई इसके उपरांत अनेक प्रयोग हुए और प्रयोगों द्वारा विभिन्न तरंगदैर्ध्यों या विभिन्न आवृत्तियों की विद्युत चुंबकीय तरंगों का उत्पादन संभव हो सका है।

इन विद्युत चुंबकीय तरंगों की तरंग धैर्य 1/10¹⁴ मीटर से 10⁴ मीटर तक की परास में फैली होती है। इन विद्युत चुंबकीय तरंगों के गुण उनकी तरंगदैर्ध्य पर निर्भर करते हैं अतः विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम मे विभिन्न गुणों वाली विद्युत चुंबकीय तरंगों को उनकी बढ़ती तरंगदैर्ध्य के क्रम में रखा जाता है।


विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम क्या है?

        यदि परिभाषा देखें तो विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम एक खास क्रम है जिसमें विभिन्न गुणों वाली विद्युत चुंबकीय तरंगों को उनकी बढ़ती हुई तरंगदैर्ध्य के क्रम में रखा जाता है। तरंगदैर्ध्य के बढ़ते हुए क्रम में यह तरंगे निम्नलिखित हैं:

  1. गामा किरणें
  2. एक्स किरणें
  3. पराबैंगनी किरणें
  4. दृश्य प्रकाश
  5. अवरक्त विकिरण
  6. माइक्रो तरंगे
  7. रेडियो तरंगे

ध्यातव्य है कि इन तरंगों की तरंगदैर्ध्य एक निश्चित ना होकर, कुछ परास में इस प्रकार फैली होती हैं कि एक वर्ग के विकिरण दूसरे वर्ग के विकिरण में आंशिक रूप से अति व्याप्त होते हैं। उपर्युक्त सभी विद्युत चुंबकीय तरंगों के कुछ गुण सर्वनिष्ठ होते हैं जैसे-

  • यह तरंगे निर्वात में भी चल सकती हैं।
  • सभी तरंगों की निर्वात में चाल 3×10⁸ मीटर प्रति सेकंड होती है।
  • सभी तरंगे परावर्तन अपवर्तन व्यतिकरण विवर्तन तथा ध्रुवण के गुण दर्शाती हैं।
  • ये सभी तरंगे अनुप्रस्थ तरंगेे होती हैं तथा इन सभी तरंगों पर विद्युत क्षेत्र तथा चुंबकीय क्षेत्र का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
इनके गुणों में अंतर केवल इतना है कि इनकी तरंगदैर्ध्य भिन्न-भिन्न होती है अतः इनके कुछ लाक्षणिक गुण भिन्न-भिन्न होते हैं।
       विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम का केवल एक बहुत छोटा भाग ही हमें दिखाई देता है क्योंकि केवल इस भाग की विद्युत चुंबकीय तरंगे ही हमारी आंख के रेटिना पर दृष्टि संवेदना उत्पन्न करती हैं। विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम के इस भाग को दृश्य स्पेक्ट्रम कहते हैं इस भाग में छोटी तथा बड़ी तरंगदैर्ध्य की विद्युत चुंबकीय तरंगों का वर्ण क्रम अदृश्य होता है अतः विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम को मुख्यता निम्नलिखित दो वर्गों में बांटा जा सकता है :

  1. दृश्य स्पेक्ट्रम
  2. अदृश्य स्पेक्ट्रम


दृश्य स्पेक्ट्रम:-

      दृश्य प्रकाश का अध्ययन सर्वप्रथम वैज्ञानिक न्यूटन ने सन 1666 में किया था सर्वप्रथम न्यूटन ने दृश्य प्रकाश की तरंग धैर्य की सीमा के विषय में बताया था वस्तुओं के श्वेत तप्त होकर चमकने पर दृश्य प्रकाश प्राप्त होता है विद्युत बल्ब सोडियम लैंप फ्लोरेसेंट ट्यूब से प्राप्त प्रकाश दृश्य प्रकाश होता है दृश्य स्पेक्ट्रम के माध्यम से ही हम संसार की सभी वस्तुओं को देख पाते हैं। संपूर्ण स्पेक्ट्रम का यह बहुत ही छोटा भाग है। दृश्य स्पेक्ट्रम के ऊपर या नीचे के स्पेक्ट्रम को सीधे आंखों से नहीं देखा जा सकता है। विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम के दृश्य भाग की विभिन्न तरंगदैर्ध्यों की विद्युत चुंबकीय तरंगे हमारी आंख के रेटिना पर विभिन्न रंगों का प्रभाव उत्पन्न करती हैं। स्पेक्ट्रम के इस भाग में हमें बैगनी रंग से लेकर लाल रंग तक दिखाई पड़ते हैं, स्पेक्ट्रम के इस भाग को दृश्य स्पेक्ट्रम कहते हैं। दृश्य स्पेक्ट्रम की तरंगदैर्ध्य परास सीमित होती है इसका विस्तार तरंगदैर्ध्य परास 4.0/10⁷ मीटर या 4000Å से 8/10⁷ मीटर या 8000Å तक होता है। इसमें लाल रंग की तरंगदैैर्ध्य सबसे अधिक ≈8000Å तथा बैगनी रंग की तरंगदैर्ध्य सबसे कम ≈4000Å होती है। वास्तव में बैंगनी तथा लाल रंगों के बीच असंख्य रंग फैले होते हैं यदि इन्हें क्रम मे रखें तो क्रमशः बैगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी, लाल होंगे


अदृश्य स्पेक्ट्रम:-

 विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम केवल बैगनी रंग से लाल रंग तक ही सीमित नहीं है अपितु बैंगनी रंग से नीचे तथा लाल रंग से ऊपर भी काफी विस्तार में फैला हुआ है स्पेक्ट्रम के ये भाग आंख से दिखाई नहीं देते हैं परंतु इनकी उपस्थिति अन्य विधियों द्वारा पहचाने जा सकती है, यही कारण है कि स्पेक्ट्रम के बैगनी रंग के नीचे तथा लाल रंग के ऊपर वाले भाग को अदृश्य स्पेक्ट्रम कहते हैं। लाल रंग से ऊपर बड़ी तरंगदैर्ध्य वाली तरंगें क्रमशः अवरक्त विकिरण माइक्रो तरंगे तथा रेडियो तरंगे कहलाती हैं तथा बैंगनी रंग से नीचे छोटी तरंगदैर्ध्य वाली तरंगें क्रमशः पराबैंगनी विकिरण एक्स-किरणें तथा गामा किरणें कहलाते हैं आइए विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम मे अदृश्य स्पेक्ट्रम के प्रत्येक भाग को जानते हैं


गामा किरणें-

गामा किरणों की खोज वैज्ञानिक बैकुरल तथा क्यूरी ने सन 1896 में की थी। इन तरंगों की तरंगदैर्ध्य लगभग 6/10¹⁵ मीटर से 1/10¹⁰ मीटर की कोटि की होती है। इन तरंगों के प्रमुख स्त्रोत प्राकृतिक तथा कृतिम रेडियो एक्टिव पदार्थ हैं। यह किरणें फोटोग्राफिक प्लेट को प्रभावित कर देती हैं तथा प्रतिदीप्तशील पदार्थ से लेपित पर्दे जैसे बेरियम प्लैटिनो सायनाइड से लेपित पर्दे पर चमक उत्पन्न करती हैं। ये किरणें अत्यंत ऊर्जा युक्त होती हैं तथा इन किरणों की वेधन क्षमता बहुत अधिक होती है जिससे ये किरणें लोहे की लगभग 30 सेमी मोटी चादर को भी पार कर जाती हैं।

गामा किरणों का उपयोग :

         गामा किरणों के मुख्य उपयोग निम्नलिखित है
  • इन किरणों का उपयोग कैंसर तथा ट्यूमर रोग के निदान मे किया जाता है।
  • गामा किरणों के माध्यम से खाद्य पदार्थों को अधिक समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है।
  • इनका उपयोग नाभिकीय अभिक्रिया के संचालन में भी किया जाता है।
  • तथा नाभिक के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए भी गामा किरणों का उपयोग किया जाता है।


एक्स किरणें-

एक्स किरणों की खोज वैज्ञानिक रॉजन ने सन 1895 में की थी इनकी तरंगदैर्ध्य लगभग 1/10¹³ मीटर से 3/10⁸ मीटर की कोटि की होती है इनके स्त्रोत की बात करें तो जब अत्यधिक ऊर्जा की कैथोड किरणों को किसी उच्च गलनांक के धातु लक्ष्य पर टकराकर रोका जाता है तो एक्स किरणे उत्पन्न होती हैं। यह किरणें फोटोग्राफिक प्लेट को प्रभावित कर देती है तथा अपारदर्शी पदार्थ को पार कर जाती हैं इनकी वेधन क्षमता गामा किरणों की अपेक्षा कम होती है प्रतिदीप्ति सेल पदार्थ जैसे बेरियम प्लैटिनो सायनाइड मे पड़ने पर यह किरणें चमक उत्पन्न करती हैं।

एक्स किरणों का उपयोग:

       एक्स किरणों के मुख्य उपयोग निम्नलिखित हैं
  • सर्जरी चिकित्सा में हड्डी टूटने पर हड्डी टूटने के स्थान का पता लगाने में।
  • शरीर के किसी भाग में गोली आदि का पता लगाने में या किडनी मे पत्थर की उपस्थिति ज्ञात करने में।
  • कैंसर रोग तथा त्वचा रोग के निदान में।
  • इंजीनियरिंग में गर्डर आदि धात्विक वस्तुओं में त्रुटि का पता लगाने में।
  • वैज्ञानिक शोध कार्य जैसे क्रिस्टल संरचना ज्ञात करने में।
  • चोरों द्वारा अपने शरीर में छिपाई गई मूल्यवान वस्तुओं का पता लगाने में।



पराबैंगनी विकिरण-

पराबैंगनी विकिरणों की खोज वैज्ञानिक रिटर ने सन 1801 में की थी इनकी तरंगदैर्ध्य लगभग 6/10¹⁰ मीटर से 4/10⁷ मीटर की कोटि की होती है। सूर्य से प्राप्त विकिरण में अत्यधिक भाग पराबैंगनी किरणों का होता है। इसके अन्य स्त्रोत विद्युत विसर्जन नलिका कार्बन आदि हैं यह विकिरण दृश्य प्रकाश की तुलना में अधिक रासायनिक सक्रिय होते हैं सिल्वर क्लोराइड के घोल को यह विकिरण काला कर देते हैं काँच इन विकिरणों को अवशोषित कर लेता है लेकिन क्वार्ट्ज तथा फ्लोरस्पार इन्हें आरपार कर देता है अतः इनके अध्ययन के लिए कांच की जगह क्वार्ट्ज या फ्लोरस्पार के प्रिज्म उपयोग में लाते हैं तथा पराबैंगनी विकिरण देने वाले लैंपों के बल्ब भी कांच की बजाए क्वार्ट्ज के बनाए जाते हैं।

पराबैंगनी किरणों के उपयोगः

       पराबैंगनी किरणों के मुख्य उपयोग निम्न हैं
  • इन विकिरणों का उपयोग खाद्य पदार्थों के संरक्षण में किया जाता है।
  • अंगुली के चिन्ह फिंगर प्रिंट की जांच करने में भी पराबैंगनी किरणों का उपयोग किया जाता है।
  • पराबैंगनी किरणों का उपयोग अनेक रोगों के कीटाणुओं का नाश करने के लिए किया जाता है।
  • इन किरणों से सर्जिकल उपकरणों की सफाई की जाती है।
  • आण्विक संरचना के अध्ययन में भी यह विकिरण उपयोगी है।
  •  खनिज सैंपल की जांच करने आदि में भी इस विकिरण का उपयोग किया जाता है।


अवरक्त विकिरण-

अवरक्त विकिरण का आविष्कार वैज्ञानिक हरशैल ने सन 1800 मे किया था इन तरंगों की तरंगदैर्ध्य 8/10⁷ मीटर से 1/10³ मीटर तक की कोटि की होती हैं। कोई भी वस्तु गर्म होने पर अवरक्त विकिरण उत्सर्जित करती है अतः इनमें उष्मीय प्रभाव सर्वाधिक होता है। कांच इन विकिरणों को अवशोषित कर लेता है अत: इन विकीरणों के अध्ययन के लिए कांच के प्रिज्म की वजाय साधारण नमक के प्रिज्म का उपयोग करते हैं इन विकिरणों में उष्मीय प्रभाव बहुत अधिक होता है यह विकिरण फोटोग्राफी प्लेट को प्रभावित नहीं करते हैं इन विकिरणों की तरंगदैर्ध्य अधिक होने के कारण इन का प्रकीर्णन बहुत कम होता है जिससे यह विकिरण कोहरे में भी अधिक दूरी तक जा सकते हैं

अवरक्त विकिरणों के उपयोगः

      अवरक्त विकिरण के मुख्य उपयोग निम्न है
  • रोगी की सिकाई में
  • उपग्रह को सोलर सेल की सहायता से विद्युत ऊर्जा प्रदान करने में
  • रात्रि के समय फोटोग्राफी में
  • कोहरे में संकेत एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजने में
  • ग्रीन हाउस में पौधों को गर्म रखने के लिए
  • अवरक्त फोटोग्राफी द्वारा मौसम के बारे में पूर्व सूचना देने में
  • अवरक्त अवशोषण वर्णक्रम द्वारा आणविक संरचना के अध्ययन में
  • विद्युत संयंत्रों के रिमोट में


माइक्रो तरंगे-

इनका आविष्कार वैज्ञानिक हर्ट्ज़ ने सन् 1888 में किया था इनकी तरंगदैर्ध्य लगभग 1 मिलीमीटर से 30 सेंटीमीटर तक होती है यह तरंगे इलेक्ट्रॉनिक युक्तियों जैसे क्रिस्टल दोलित्र द्वारा उत्पन्न की जाती है। इन्हें बिंदु संपर्क डायोड द्वारा सूचित किया जाता है।

माइक्रो तरंगों के उपयोगः

      माइक्रो तरंगों के मुख्य उपयोग निम्न हैं
  • राडार और दूरसंचार में
  • माइक्रो तरंग ओवन में खाद्य पदार्थ को पकाने के लिए


रेडियो तरंगे-

रेडियो तरंगों की खोज सर्वप्रथम वैज्ञानिक मारकोनी ने सन 1895 में की थी इनकी तरह लगभग 0.3 मीटर से 600 मीटर तक होती है इन्हें किसी विद्युत चालक में उच्च आवृत्ति की प्रत्यावर्ती धारा के प्रवाह द्वारा उत्पन्न किया जाता है इन तरंगों को संसूचन  रेडियो अभीग्राही तथा ट्रांजिस्टर में अनुनादी परिपथ द्वारा उत्पन्न किया जाता है यह बेतार तरंगे भी कहलाती है रेडियो तरंगों को दो वर्गों में बांटा जाता है लघु रेडियो तरंगे या हर्ट्ज तरंगे, दीर्घ रेडियो तरंगे या बेतार तरंगे रेडियो तरंगों के प्रसारण में इन्हें पुनः आवृत्ति के आधार पर विभिन्न बैण्डों में वर्गीकृत किया जाता है।

रेडियो तरंगों का उपयोग:

  • रेडियो तरंगों का उपयोग दूरसंचार तथा राडार में किया जाता है

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