बायोम
भूमंडल में विशाल जीवमंडल का स्वरूप वनस्पतियों एवं प्राणियों से मिलकर बनता है। यह दोनों कारक (वनस्पति एवं प्राणी) अत्यंत महत्वपूर्ण, परस्पर संबंधित एवं संगठित होकर जीवमंडल को उत्कृष्ट बनाते हैं। भूतल पर वनस्पति समुदाय में भिन्नता देखने योग्य है। यदि वनस्पति के आधार पर जीवमंडल का निरीक्षण करें तो इसमें अनेक छोटे एवं बड़े आकार के परिस्थितिक तंत्र परिलक्षित होते हैं। अनेक छोटे-बड़े पारिस्थितिक तंत्र का समूह ही जीवमंडल है। ध्यातव्य है की पारिस्थितिक तंत्र में प्राणी एवं वनस्पति दोनों की मौजूदगी रहती है अतः जैवक्षेत्र के अन्तर्गत प्रायः स्थलीय भाग के समग्र वनस्पति और जन्तु समुदायों को सम्मिलित करते हैं क्योंकि सागरीय जैवक्षेत्र का निर्धारण कठिन होता है। हालांकि इस दिशा में शोधकर्ताओं द्वारा प्रयास किये गये हैं। यद्यपि जैवक्षेत्र में वनस्पति तथा जन्तु दोनों को सम्मिलित करते हैं, तथापि हरे पौधों का ही प्रभुत्व होता है क्योंकि इनका कुल जीवभार जन्तुओं की तुलना में बहुत अधिक होता है।
"समस्त वनस्पतियों एवं प्राणियों के सम्मिलित रूप से सृजित पारिस्थितिक को जीवोम कहा जाता है"
अर्थात बायोम एक विस्तृत क्षेत्र में पाए जाने वाले समस्त पादपों तथा प्राणियों का बृहद पारिस्थितिक समुदाय है। एक बायोम के अंतर्गत सामान्यतः उन केंद्रों के समस्त पादपों एवं प्राणियों को सम्मिलित किया जाता है जिन के सामान्य लक्षण उस संपूर्ण क्षेत्र में लगभग समान होते हैं अतः बायोम पृथ्वी के तल पर एक वृहद जीव कटिबंध यानी कि बायोटिक जोन या लाइफ जोन होता है। मैं एक बात यहां स्पष्ट कर देना चाहूंगा कि भूतल पर वनस्पतियों और प्राणियों के वितरण प्रतिरूपों पर जलवायु का सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है यही कारण है कि बायोम का निर्धारण मुख्यता जलवायु प्रकार के अनुसार होता है। हम लेख में आगे इसे समझने का प्रयास करेंगे।
जीवोम के सामान्य लक्षण क्या हैं ?
पौधों तथा प्राणियों का सामूहिक समुच्चय ही जीवोम कहलाता है। जिसमें कुछ निश्चित सामान्य लक्षण प्राकृतिक रूप से सृजित हो जाते हैं जिससे एक जीवोम इकाई दूसरे जीवोम इकाई से भिन्न प्रतीत होती है। प्रत्येक बायोम में अधोलिखित कुछ महत्वपूर्ण लक्षण विद्यमान होते हैं। जैसे-
(१) प्रत्येक जीवोम या बायोम में पौधे तथा प्राणी साथ साथ सामंजस्यपूर्ण अवस्था में रहते हैं यह परस्पर अवलंबित अर्थात एक दूसरे पर आश्रित होते हैं।
(२) बायोम में पौधे तथा प्राणियों में अंतर्संबंध विद्यमान होता है जिनके मध्य प्रतिक्रिया निरंतर सक्रिय रहती है।
(३) किसी बायोम में एक ही तरह का परितंत्र (ईकोसिस्टम) होता है, अतः उस बायोम के पौधे एक ही प्रकार की परिस्थितियों में पनपने के लिए एक जैसे तरीक़े अपनाते हैं कुल मिलाकर बायोम विशेष में साम्यता परिलक्षित होती है जिससे एक खास प्रकार की बायोम इकाई का सृजन होता है।
(४) दो बायोम के मध्य एक लक्ष्मण रेखा विद्यमान ना होकर एक संक्रमण प्रदेश होता है जिसमें दोनों के लक्षण थोड़ी मात्रा में उपस्थित होते हैं।
(५) वनस्पतियां किसी बायोम के प्रधान लक्षणों को अभिव्यक्त करती है वनस्पतियों में भिन्नता पर्यावरणीय भिन्नताओं के कारण उद्घाटित होती है जिससे अलग-अलग बायोम इकाई का सृजन होता है और प्रत्येक इकाई में साम्यता बनी रहती है।
जीवोम को प्रभावित करने वाले कारक (Factors affecting to biomes)
किसी बायोम के उद्भव या विकास में जलवायु भू-आकृतिक बनावट आदि का प्रभाव पड़ता है। अतीत से वर्तमान तक बायोम की संरचना एवं विकास की परिस्थितियों में अनेकों बार परिवर्तन घटित हो चुका है जिससे अतीत से लेकर वर्तमान तक में अनेक बायोम अस्तित्व विहीन हो गए तथा अनेक नए बायोम सृजित हो चुके हैं। बायोम के अस्तित्व एवं विकास को प्रभावित करने वाली निम्नलिखित परिस्थितियां हैं।
(१) हम जानते हैं कि बेगनर के महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत एवं प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत के अनुसार महाद्वीपों का विस्थापन अतीत से प्रारंभ है और वर्तमान में सतत संचालित है। महाद्वीपों के संचलन से उस पर विद्यमान जीवोम धीरे-धीरे नवीन प्रकार के जलवायु में पहुंच जाता है नवीन पर्यावरण के साथ वनस्पतियां तथा प्राणी समायोजन करते हैं परंतु इसमें कुछ को सफलता मिलती है तथा कुछ नष्ट हो जाते हैं। इस प्रकार महाद्वीपों के विस्थापन से किसी जीवोम की संरचना प्रभावित होती है।
(२) अतीत से वर्तमान तक अनेक बार जलवायु की परिवर्तनकारी घटनाएं घटित हो चुकी हैं और यह प्रक्रिया अत्यंत धीमी गति से जारी भी है इसका प्रत्यक्ष प्रभाव बायोम के अस्तित्व पर पड़ता है।
(३) कुछ अन्य प्राकृतिक घटनाएं जैसे ज्वालामुखी, भूकम्प, सागरतल का उत्थान, भूस्खलन तथा पर्वत निर्माण आदि जीवोम के अस्तित्व को प्रभावित करती हैं।
(४) प्रकृति में अत्यधिक मानवीय हस्तक्षेप भी काफी हद तक किसी जीवोम को प्रभावित कर सकता है।
जीवोम के प्रकार (Types of Biomes):
बायोम के उद्भव विकास सृजन आदि में जलवायु भू-आकृतिक बनावट आदि का प्रभाव पड़ता है। भूतल पर इन सभी कारकों में भिन्नता है जिस कारण वनस्पतियों एवं जीव जंतुओं का विकास भिन्न भिन्न प्रकार से हुआ है। समान जलवायु की परिस्थितियों में समान वनस्पति एवं जीव जंतु समुदाय का विकास हुआ है जो अन्य जलवायु की परिस्थितियों वाले समुदाय से पूर्णतया भिन्न है अतः इन कारकों के आधार पर बायोम के प्रकारों का निर्धारण किया जा सकता है।
विश्व के प्रमुख बायोम को दो बृहद श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है-
(१) स्थलीय बायोम (Terrestrial Biomes)
(२) जलीय बायोम (Aquatic Biomes)
स्थलीय बायोम (Terrestrial biomes)-
स्थलीय बायोम को मुख्य रूप से चार श्रेणियों में बांटा जा सकता है-
- वनीय बायोम (Forest biomes) इसके अंतर्गत विशुवतीय वन बायोम, मानसूनी वन बायोम, रूम सागरीय वन बायोम कोंणधारी वन बायोम सम्मिलित हैं।
- घास प्रदेशीय बायोम (Grass land biomes)
- टुन्ड्रा बायोम (Tundra biomes)
- मरुस्थल बायोम (Desert biomes)
जलीय बायोम (Aquatic biomes)-
जलीय बायोम को मुख्य रूप से तीन भागों में बांटा जा सकता है-
- सागरीय बायोम (Ocean biomes) इसके अंतर्गत खुला समुद्र, प्रवाल भित्ति, तटरेखा, बैरियर द्वीप सम्मिलित हैं।
- संक्रमण कालीन बायोम (Transitional biomes) इसके अंतर्गत आर्द्रभूमि, कच्छ/मैंग्रोव, ज्वारनदमुख सम्मिलित हैं।
- अलवण जलीय/स्वच्छ जल वायोम (Fresh water biomes) इसके अंतर्गत स्थिर जल जैसे तालाब झील आदि तथा बहता हुआ जल जैसे नदियां झरने आदि सम्मिलित हैं।
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