पृथ्वी का वातावरण और विद्युत चुंबकीय विकिरणों के लिए वायुमंडल का व्यवहार
नमस्कार साथियों आज हम इस लेख में वायुमंडल की विभिन्न परतों या वायुमंडल की संरचना को समझने का प्रयास करेंगे साथ ही यह समझेंगे की विभिन्न विद्युत चुंबकीय विकिरणों के लिए पृथ्वी के वायुमंडल का व्यवहार कैसा होता है।
पृथ्वी के ऊपर लगभग 300 किलोमीटर की ऊंचाई तक वायु का एक घेरा है जिसे वायुमंडल कहते हैं। वायुमंडल का संघटन (composition) हर जगह एक समान नहीं होता है अपितु यह ऊंचाई के साथ धीरे-धीरे बदलता जाता है। समुद्र तल पर वायु में आयतन के अनुसार 78% नाइट्रोजन 21% ऑक्सीजन 0.9% आर्गन 0.03% कार्बन-डाइऑक्साइड 0.002% अक्रिय गैसें जैसे निऑन, हीलियम, क्रीप्टॉन तथा कुछ मात्रा में जलवाष्प हाइड्रोकार्बन, हाइड्रोजन-पराक्साइड, सल्फर के यौगिक एवं धूल के कण पाए जाते हैं। वायुमंडल का संघटन लगभग 100 किलोमीटर की ऊंचाई तक एक समान पाया जाता है लेकिन इसका घनत्व ऊंचाई के साथ घटता जाता है। हालाकि किन्ही दो परतों के बीच कोई निश्चित सीमा रेखा नहीं होती है फिर भी ताप तथा घनत्व परिवर्तन के आधार पर वायुमंडल को 5 परतों में बांटा जा सकता है।
(१) छोभमंडल
(२) समतापमंडल
(३) ओजोनमंडल
(४) मध्यमंडल
(५) आयनमंडल
(Troposphere) छोभमंडल:-
यह वायुमंडल का सबसे नीचे का भाग है। भूमध्य रेखा (इक्वेटर) पर इसकी ऊंचाई 18 किमी है जो ध्रुवों पर घटकर सिर्फ़ 8 किमी ही रह जाती है। इस परत की औसत ऊंचाई पृथ्वी तल से लगभग 12 किलोमीटर तक है। गर्मियों में क्षोभ मंडल की ऊंचाई कुछ बढ़ जाती है तथा सर्दियों में घट जाती है। वायुमंडल के इस भाग में सदैव विक्षोभ होते रहते हैं इसीलिए इसे क्षोभमंडल कहते हैं। इस भाग का ताप पृथ्वी तल से ऊंचाई बढ़ने पर घटता जाता है। ताप घटने की दर लगभग 6.5 डिग्री सेल्सियस प्रति किलोमीटर होती है। अतः इस परत के सबसे ऊपर का माध्य ताप लगभग -56 डिग्री सेल्सियस होता है। इस भाग में मुख्यतः जलवाष्प तथा कार्बन डाइऑक्साइड, धूलकण, वायुधुन्ध आदि की उपस्थिति रहती है तथा यहीं सभी मौसमी घटनाएं घटित होती हैं। यह पृथ्वी की वायु का सबसे घना भाग है और पूरे वायुमंडल के द्रव्यमान का 80% हिस्सा इसमें मौजूद है। इस भाग में उपस्थित जलवाष्प तथा कार्बन डाइऑक्साइड सूर्य तथा पृथ्वी से आने वाले अवरक्त विकिरणों को शीघ्र ही अवशोषित कर लेती हैं जिससे पृथ्वी पर जीवन जीने लायक तापमान बना रहता है। ऊपर जाने पर वायु का घनत्व घटता जाता है तथा ऊपरी सीमा पर वायु का घनत्व घटकर पृथ्वी सतह पर घनत्व का 1/10वां भाग रह जाता है।
(Stratosphere) समतापमंडल:-
यह परत पृथ्वी तल से 12 किलोमीटर ऊंचाई से लगभग 30 किलोमीटर ऊंचाई तक फैली होती है इस पर्त के वायुमंडल का ताप लगभग एक समान बना रहता है। यह भाग लगभग विक्षोभ रहित होता है तथा इस भाग में धूल या जलवाष्प उपस्थित नहीं होते हैं।
(Ozonosphere) ओजोनमण्डल:-
वास्तव में यह मंडल समताप मंडल का ही उपरी हिस्सा है यह परत पृथ्वी तल से लगभग 30 किलोमीटर से 50 किलोमीटर की ऊंचाई तक फैली होती है। इस क्षेत्र में वायुमंडल का मुख्य अवयव ओजोन है। यह गैस सूर्य से आने वाली पराबैंगनी विकिरणो तथा एक्स किरणों का अधिकांश भाग अवशोषित कर लेती है तथा उन्हें पृथ्वी पर नहीं पहुंचने देती है। पराबैंगनी विकिरण मनुष्य जीव जंतु एवं पौधों के लिए अत्यंत हानिकारक होते हैं अतः ओजोन परत सुरक्षा कवच का कार्य करती है। यह वायुमंडल की जीवन रक्षक परत है। इसीलिए पृथ्वी के वायुमंडल में ओजोन परत का होना आवश्यक है। इस भाग में जैसे-जैसे ऊपर जाते हैं तापमान बढ़कर -56 डिग्री सेल्सियस से लगभग 7 डिग्री सेल्सियस हो जाता है तथा वायु का घनत्व घटकर पृथ्वी की सतह के पास वाले वायुमंडल के घनत्व का केवल 1/100वां भाग रह जाता है।
(Mesosphere) मध्यमंडल:-
पृथ्वी तल से लगभग 50 किलोमीटर से 80 किलोमीटर ऊंचाई की परत को मध्य मंडल कहते हैं इस परत का ताप उचाई बढ़ने पर घटता जाता है इस भाग में ताप बढ़ने की दर लगभग 3.3 डिग्री सेल्सियस प्रति किलोमीटर होती है इस परत के सबसे ऊपर का ताप लगभग -90 डिग्री सेल्सियस होता है ऊपर जाने पर वायु का घनत्व घटकर पृथ्वी सतह पर घनत्व का केवल 1/100000 गुना रह जाता है। अंतरिक्ष से आने वाले उल्का पिण्ड मध्यमण्डल में ही आकर जलकर नष्ट हो जाते है।
(Ionosphere) आयनमंडल:-
पृथ्वी तल से लगभग 80 किलोमीटर से 300 किलोमीटर की ऊंचाई तक फैले क्षेत्र को आयन मंडल कहते हैं। जैसे-जैसे इस क्षेत्र में ऊंचाई पर जाते हैं ताप बढ़ता जाता है तथा - 90 डिग्री सेल्सियस से बढ़कर लगभग 423 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। इस मण्डल में ऊंचाई के साथ ताप में तेजी से वृद्धि होती है अतः इसे तापमण्डल भी कहते हैं। इस क्षेत्र में वायुमंडल का दाम बहुत कम होता है तथा वायु का घनत्व घटकर पृथ्वी के सतह पर घनत्व का लगभग 1/10000000000 गुना रह जाता है। सूर्य से आने वाली एक्स किरणें तथा पराबैंगनी विकिरण क्षेत्र में अवशोषित हो जाते हैं जिससे इस क्षेत्र में उपस्थित वायु का आयनीकरण हो जाता है। इस क्षेत्र में मुक्त इलेक्ट्रॉन तथा धन आवेशित आयन पाए जाते हैं। मुक्त इलेक्ट्रॉन घनत्व सभी जगह एक समान नहीं होता है इसलिए आयन मंडल को पुनः 4 भागों में बांटा गया है। सबसे पहली परत D होती है, जहां इलेक्ट्रॉन घनत्व सबसे कम होता है तत्पश्चात ऊंचाई बढ़ने पर इलेक्ट्रान घनत्व बढ़ता जाता है पृथ्वी तल से लगभग 100 किलोमीटर ऊंचाई पर परत E होती है जहां इलेक्ट्रान घनत्व सबसे अधिक होता है तत्पश्चात ऊंचाई के साथ इलेक्ट्रान घनत्व घटता जाता है तथा लगभग 300 किलोमीटर ऊंचाई पर परते F1, F2 होती हैं। परत E को कैनेलीहैवीसाइड (kennelly Heavyside) परत तथा परत F को एपल्टन (appleton) परत भी कहते हैं। सूर्य से आने वाली रेडियो तथा माइक्रो तरंगे आयन मंडल से परावर्तित होकर पुनः अंतरिक्ष में चली जाती हैं तथा पृथ्वी तल से प्रेषित रेडियो तरंगे आयनमंडल से पूर्ण आंतरिक परावर्तित होकर वापस पृथ्वी पर आ जाती हैं। रेडियो तरंगों का परावर्तन आयनमंडल की परतों E तथा F से होता है।
विद्युत चुंबकीय विकिरणों के लिए वायुमंडल का व्यवहार–
(A) सूर्य से आने वाले विकिरणों के लिए:
पृथ्वी पर प्रकाश ऊष्मा तथा अन्य सभी प्रकार के विद्युत चुंबकीय विकिरण सूर्य से प्राप्त होते हैं। सूर्य से आने वाले विभिन्न विद्युत चुंबकीय विकिरणों के लिए वायुमंडल भिन्न भिन्न प्रकार से व्यवहार करता है यह व्यवहार निम्नलिखित हैं-
(१) दीर्घ रेडियो तरंगे वायुमंडल की ऊपरी परतों आयन मंडल से परावर्तित होकर वापस अंतरिक्ष में चली जाती हैं।
(२) माइक्रो तरंगों, दृश्य प्रकाश तथा लघु तरंगदैर्ध्य के अवरक्त विकिरणों के लिए वायुमंडल पारदर्शी होता है तथा शेष विकिरण जैसे गामा किरणें, एक्स किरणें, पराबैंगनी विकिरण तथा दीर्घ तरंगदैर्ध्य के अवरक्त विकिरण आयनमंडल के विभिन्न परतों द्वारा अधिकांशतः अवशोषित हो जाते हैं।
(३) एक्स किरणों तथा पराबैंगनी विकिरणों को मुख्यतः ओजोन परत अवशोषित कर लेती है।
(४) केवल लघु तरंगदैर्ध्य के बहुत कम अवरक्त विकिरण ही वायुमंडल से होकर पृथ्वी तक पहुंच पाते हैं जिससे पृथ्वी गर्म हो जाती है।
(B) पृथ्वी से प्रेषित विकिरण के लिए:
पृथ्वी से प्रेषित विभिन्न तरंगदैर्ध्य के विकिरणों के लिए वायुमंडल निम्न प्रकार से व्यवहार करता है-
(१) पृथ्वी से प्रेषित अवरक्त विकिरण वायुमंडल की नीचे की परतों तथा बादलों से ही परावर्तित होकर वापस पृथ्वी पर आ जाते हैं।
(२) पृथ्वी से प्रेषित माइक्रो तरंगे बिना मुड़े हुए वायुमंडल को पार करके ऊपर अंतरिक्ष में चली जाती हैं।
(३) पृथ्वी से प्रेषित लघु रेडियो तरंगे आयन मंडल द्वारा विचलित हो जाती है, लेकिन वायुमंडल को पार कर जाती है। इसके विपरीत 10 मीटर से बड़ी तरंगदैर्ध्य की रेडियो तरंगे अर्थात दीर्घ रेडियो तरंगे आयन मंडल द्वारा पूर्ण आंतरिक परावर्तित होकर पृथ्वी पर वापस आ जाती है।
Very helpfull to know about our atmosphere 👌
जवाब देंहटाएंएक टिप्पणी भेजें