लिथियम आयन बैटरी (The lithium-ion battery)

लीथियम ऑयन बैटरी


जीवाश्म ईंधन जैसे कोयला पेट्रोलियम के सीमित होने के चलते वैकल्पिक ईंधन स्रोतों को विकसित करने हेतु वैज्ञानिक अनुसंधान शुरू किये गए जिसकी परिणति बैटरी के रूप में हुई। ऐसा कहा जा सकता है कि 19वीं सदी की शुरुआत रासायनिक बैटरियों की रही।

प्रिय मित्रों अधिकांश रूप से आप सभी के मोबाइल फोन मे ऊर्जा आपूर्ति के लिए लीथियम ऑयन बैटरी का इस्तेमाल किया गया होगा या कुछ मोबाइलों मे लीथियम पॉलीमर बैटरी का इस्तेमाल किया गया होगा पर क्या आप लोग इस बैटरी के बारे मे जानते हैं? यदि नहीं! तो आइए जानते हैं

       जब लिथियम आयन बैटरी का आविष्कार नहीं हुआ था तब कई वर्षों तक, निकल-कैडमियम बैटरी वायरलेस संचार वा मोबाइल कंप्यूटिंग जैसे पोर्टेबल उपकरणों के लिए एकमात्र उपयुक्त बैटरी हुआ करती थी। निकल-मेटल-हाइड्राइड और लिथियम-आयन 1990 के दशक की शुरुआत में उभर कर सामने आया, और कई मुश्किल चुनौतियों से लड़ते हुए जैसे शार्ट-सर्किट, भयंकर ज्वाला विस्फोट आदि जैसी रखरखाव की समस्या को दूर कर के इंजीनियर्स ने इस रसायन को शानदार बैटरी का आकार प्रदान किया। आज लिथियम-आयन सबसे तेजी से बढ़ता हुआ और सबसे होनहार बैटरी रसायन माना जाता है।




सर्वप्रथम पायनियर ने जीएन लुईस के निगरानी मे लिथियम बैटरी के साथ सन 1912 में काम शुरू किया था, लेकिन 1970 के दशक की शुरुआत तक ऐसी कोई सफलता नहीं मिल पाई थी परन्तु कुछ समय बाद पहली बार गैर-रिचार्जेबल (जिसे पुनः चार्ज नहीं किया जा सकता था) लिथियम बैटरी व्यावसायिक रूप से उपलब्ध हुई। लिथियम सभी धातुओं में सबसे हल्का होता है तथा इसमें सबसे प्रबल विद्युत रासायनिक क्षमता है और यह अपने वजन के आधार पर सबसे ज्यादा ऊर्जा घनत्व प्रदान करता है। परन्तु सुरक्षा समस्याओं के कारण रिचार्जेबल (जिसे उपयोग के बाद चार्ज किया जा सके) लिथियम बैटरी विकसित करने के प्रयास विफल रहे। लिथियम धातु की अंतर्निहित अस्थिरता वाले गुणों के कारण, विशेष रूप से चार्जिंग के दौरान उत्पन्न होने वाली विषम परिस्थिति जिससे इसे पुनः रिचार्ज करना मात्र प्रयोगशाला मे ही सम्भव था अतः व्यावसायिक रूप से गैर रिचार्जेबल बनाया गया था। इस बैटरी का पुनः चार्ज नहीं होना इसकी सबसे बड़ी त्रुटि थी अतः कुछ नए अनुसंधान किए गए और लीथियम धातु की जगह लिथियम आयनों का उपयोग करके एक गैर-धातु लिथियम बैटरी का आविष्कार किया गया यद्यपि लिथियम धातु वाली बैटरी की तुलना में लीथियम आयन वाली बैटरी ऊर्जा घनत्व में थोड़ा कम है परन्तु लिथियम-आयन लिथियम धातु की तुलना में ज्यादा सुरक्षित है, बशर्ते चार्जिंग और डिस्चार्जिंग के दौरान कुछ सावधानियां रखी जाती हों। सन 1991 में, सोनी कॉर्पोरेशन ने पहली बार लिथियम-आयन बैटरी का व्यवसायीकरण किया।



            बैटरी के विकास क्रम से जुड़े हुए कुछ नामों की चर्चा करें तो व्हिटिंगम ने लीथियम के गुणों का अध्ययन कर के लीथियम आयन बैटरी को एक आदर्श बैटरी के रूप में स्थापित किया तथा गुडइनफ ने व्हिटिंगम की बैटरी को बेहतर बनाने पर काम किया। उन्होंने पाया कि कैथोड में उच्च क्षमता हो सकती है यदि इसे धातु सल्फाइड के बजाय धातु ऑक्साइड का उपयोग करके बनाया जाए। उन्होंने कैथोड में लीथियम कोबाल्ट ऑक्साइड के साथ एक बैटरी का उपयोग किया, जो कि व्हिटिंगम की बैटरी से लगभग दोगुनी शक्तिशाली थी। इस प्रयोग से पूर्व बैटरी को अपनी आवेशित स्थिति में ही चार्ज करना पड़ता था, किंतु इस अन्वेषण से उन्हें बाद में चार्ज किया जाना संभव हो पाया। योशिनो ने गुडइनफ के लीथियम-कोबाल्ट डिज़ाइन को एक वर्किंग टेम्प्लेट के रूप में इस्तेमाल किया और विभिन्न कार्बन-आधारित सामग्रियों को एनोड के रूप में आज़माया। इन्होंने पेट्रोलियम कोक, जो कि तेल उद्योग का एक उप-उत्पाद है, का प्रयोग किया। जब उन्होंने इलेक्ट्रॉनों के साथ पेट्रोलियम कोक को चार्ज किया तो लीथियम आयन पेट्रोलियम कोक में विकृत हो गए। फिर उन्होंने बैटरी को चालू किया तो इलेक्ट्रॉन और लीथियम आयन कैथोड, एनोड के रूप में प्रयोग किये गए कोबाल्ट ऑक्साइड की ओर प्रवाहित हो गए। हालाँकि योशिनो की बैटरी में उत्पन्न वोल्टेज 4 वोल्ट पर गुडइनफ की बैटरी के समान ही था किंतु यह एक स्थिर बैटरी थी, इसे लंबे समय तक इस्तेमाल किया जा सकता था एवं इसे कई बार चार्ज किया जा सकता था।


लीथियम-ऑयन बैटरी का सिद्धांत वा कार्यविधि:-


जब ठोस पदार्थों का अध्ययन किया गया तब यह पाया गया कि कुुछ ठोस ऐसे थे जिनके परमाणुओं के बीच रिक्त स्थान था। तब इन रिक्त स्थानों में धनात्मक आवेशित आयनों को फिट किया गया तब इससे ठोस पदार्थों के गुणों में परिवर्तन हुआ। तथा यह पाया गया कि लीथियम एक हल्का तत्त्व है और एक इलेक्ट्रोड के रूप में उपयोगी है क्योंकि एक बैटरी में इलेक्ट्रॉनों को एनोड (- इलेक्ट्रोड) से कैथोड (+इलेक्ट्रोड) की ओर प्रवाहित होना चाहिये। इसलिये एनोड में ऐसी सामग्री होनी चाहिये जो आसानी से अपने इलेक्ट्रॉनों को मुक्त करती है और लीथियम में यह गुण पर्याप्त मात्रा में पाया गया। इस प्रकार इसे एक आदर्श बैटरी माना गया।
          इस बैटरी के अनावेशित होते समय इसमें लिथियम आयन इसके ऋणाग्र से धनाग्र की तरफ प्रवाहित होते हैं तथा बैटरी के आवेशित होते समय इसके उल्टा चलते हैं। लिथियम-आयन बैटरी के धनाग्र और ऋणाग्र पर रासायनिक अभिक्रिया होती है। इस बैटरी का विद्युत अपघट्य, इन विद्युताग्रों के बीच लिथियम आयनों के आवागमन के लिये माध्यम प्रदान करता है।

ऋणाग्र पर होने वाली रासायनिक अभिक्रिया-
धनाग्र पर होनेे वाली रासायनिक अभिक्रिया-


लीथियम-ऑयन बैटरी की संरचना:-


लीथियम-ऑयन बैटरी की संरचना चित्र मे प्रदर्शित है, चित्र में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि दोनों इलेक्ट्रोड धातु की पतली पन्नी के रूप में होते हैं जिनके मध्य लिथियम आयन चलते हैं तथा बैटरी के बाह्य परिपथ में धारा प्रवाहित होती हैै। लीथियम-ऑयन बैटरी मे 3.6 वोल्ट का उच्च सेल वोल्टेज केवल एक सेल के साथ बैटरी के पैक को डिज़ाइन किया जा सकता है। आज कल के ज्यादातर मोबाइल फोन एक ही सेल पर चलते हैं। यानी कि एक बैटरी में केवल एक सेल लगा होता है
     लागत-से-ऊर्जा अनुपात के संदर्भ में सबसे किफायती लिथियम आयन बैटरी बेलनाकार 18650 (आकार  18 मिमी x 65.2 मिमी है )। इस सेल का उपयोग मोबाइल कंप्यूटिंग और अन्य अनुप्रयोगों के लिए किया जाता है चूंकि ये अल्ट्रा-पतली ज्यामिति के नहीं होते हैं अतः यदि स्लिम पैक की आवश्यकता होती है, तो प्रिज्मीय लिथियम-आयन सेल सबसे अच्छा विकल्प है। हालांकि ये सेल संग्रहीत ऊर्जा के संदर्भ में उच्च लागत पर आते हैं।


लीथियम-ऑयन बैटरी का रखरखाव:-


लीथियम-आयन बैटरी का रखरखाव बहुत सरल व कम खर्चीला है। बैटरी के उपयोग की अवधि लंबे समय तक बढ़ाने के लिये किसी विशेष मरम्मत चक्र की आवश्यकता नहीं होती है। हाला कि उपभोक्ताओं से शिफारिस की जाती है कि बैटरी को ओवर चार्ज होने से तथा ज्यादा तापमान से बचाएं। एक ठंडी जगह में भंडारण लिथियम-आयन (और अन्य रसायन विज्ञान) की उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को धीमा कर देता है। निर्माता 15 ° C (59 ° F) के संग्रहण तापमान की सलाह देते हैं। इसके अलावा, भंडारण के दौरान बैटरी को आंशिक रूप से चार्ज किया जाना चाहिए। निर्माता 40% चार्ज की सिफारिश करते हैं।


लीथियम-ऑयन बैटरी के लाभ:-


  • उच्च ऊर्जा घनत्व - लीथियम-ऑयन बैटरी मे ऊर्जा घनत्व की क्षमता उच्च होती है।आयरन आयन बैटरी का सामान्य परिस्थितियों में ऊर्जा घनत्व 350 वाॅट घंटे/किलोग्राम होता है, वहीं लीथियम आयन बैटरी का ऊर्जा घनत्व 220 वाॅट घंटे/किलोग्राम होता है। जिसका सीधा मतलब यह है कि छोटी सी बैटरी भी ज्यादा देर तक ऊर्जा देती रहे गी उदाहरण के लिए आप के कान मे लगने वाले ब्लूटूथ डिवाइस की छोटी सी बैटरी 1-3 दिन का बैकप प्रदान करती है 

  • पोर्टेबल - छोटे से छोटे डिवाइस मे आसानी से लगाई जा सकती है तथा यात्रा करते समय पावर बैंक के रूप में आसानी से हैंडल किया जा सकता है

  • नो प्राइमिंग - नए होने पर लंबे समय तक प्राइमिंग की जरूरत नहीं होती है। हाँ  बैटरी को नियमित रूप से आवेशित करने की जरूरत रहती है।

  • बेहतर लोड - इन बैटरियों की लोड संबंधी विशेषताएँ यथोचित रूप से अच्छी हैं और डिस्चार्ज के संदर्भ में निकल-कैडमियम के समान व्यवहार करती हैं।

  • अपेक्षाकृत कम स्व-निर्वहन - स्व-निर्वहन का अर्थ यह है कि बैटरी स्वतः ही निरावेशित या डिस्चार्ज होने लग जाए, लीथियम-ऑयन बैटरी मे स्व-निर्वहन की समस्या अन्य बैटरियों के मुकाबले जैसे निकल आधारित बैटरी के मुकाबले आधे से भी कम है।

  • कम रखरखाव - लीथियम-ऑयन बैटरी के यूजर को कोई खास रखरखाव की आवश्यकता नहीं होती है जैसे बैटरी मे पानी की जांच करना आदि, हाँ उपयोगकर्ता को यह ध्यान रखना चाहिए कि बैटरी ओवर चार्ज नहीं होने पाए हाला कि ऑटो कट ने यूजर की यह समस्या भी काफी हद तक साल्व कर दी है तथा लीथियम-ऑयन बैटरी मे आवधिक निर्वहन या डिस्चार्ज की आवश्यकता नहीं होती है।

  • उच्च धारा - मोबाइल लैपटॉप या ड्रोन जैसे बिजली उपकरणों का अनुप्रयोगों करते समय आवश्यक बहुत उच्च धारा प्रदान करने मे सक्षम है।

लीथियम-ऑयन बैटरी की सीमाएं:-


  • अस्थिर वोल्टेज - हालांकि यह उतना अस्थिर नहीं है फिर भी मोबाइल जैसे संवेदनशील डिवाइस को निश्चित विभवान्तर देने के लिए सुरक्षित सीमा के भीतर वोल्टेज  को बनाए रखना होता है अतः बैटरी मे संलग्न सुरक्षा सर्किट की आवश्यकता होती है।

  • उम्र बढ़ने के अधीन - ज़्यादातर लीथियम आयन बैटरियों की समय के साथ क्षमता में कमी एक चिंता का विषय है। आप की बैटरी भले ही उपयोग में न हो, वह समय के साथ कमजोर पड़ती जाती है हाला कि 40% चार्ज करके यदि ठंडी जगह पर भंडारण किया जाए तो यह उम्र बढ़ने के प्रभाव को कम करता है।

  • परिवहन प्रतिबंध - बड़ी मात्रा में शिपमेंट नियामक नियंत्रण के अधीन हो सकता है। अतः सुरक्षा के मद्देनजर निश्चित सीमा से ज्यादा बैटरी हवाई जहाज मे या अन्य माध्यम मे परिवहन करने पर रोक होती है हालांकि यह प्रतिबंध व्यक्तिगत कैरी-ऑन बैटरियों पर जैसे मोबाइल या लैपटॉप पर लागू नहीं होता है।

  • निर्माण के लिए महगी - लीथियम-ऑयन बैटरी की निर्माण लागत ज्यादा है अतः यह निकल-कैडमियम बैटरी की तुलना में लगभग 40 प्रतिशत अधिक महगी होती है।

  • पूरी तरह से परिपक्व नहीं - लीथियम-ऑयन बैटरी को और अधिक उन्नत बनाने के लिए लगातार शोध कार्य जारी हैं अतः बैटरी के धातु और रसायन निरंतर बदल रहे हैं। रसायन विज्ञान के लिये वर्ष 2019 का नोबेल पुरस्कार जॉन बी. गुडइनफ, एम. स्टैनले व्हिटिंगम एवं अकीरा योशिनो को लीथियम आयन बैटरी के विकास हेतु दिया गया था।

          ज्यादातर लिथियम आयन बैटरी के साथ बैटरी की उम्र एक चिंता का विषय है और कई निर्माता इस समस्या पर चुप हैं। एक वर्ष के बाद बैटरी की कुछ क्षमता मे गिरावट ध्यान देने योग्य है, चाहे बैटरी उपयोग में हो या नहीं बैटरी अक्सर दो या तीन साल बाद विफल हो जाती है। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि रसायन विज्ञान में उम्र से संबंधित अपक्षयी प्रभाव भी होते हैं। एक ही समय में, लिथियम-आयन पैक को कुछ उपकरण अनुप्रयोगों में पांच साल तक परोसा जाता है। हालांकि निर्माता लगातार लिथियम आयन में सुधार कर रहे हैं। हर छह महीने में नए और बढ़े हुए उन्रत रासायनिक संयोजन पेश किए जाते हैं। इस तरह की तेजी से प्रगति के साथ, यह आकलन करना मुश्किल है कि भविष्य मे आने वाली संशोधित बैटरी कितनी अच्छी होगी।

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