सैटेलाइट इंटरनेट
वायरलेस संचार की दुनिया में हमने एक कदम आगे बढ़ाया तो 2G नेटवर्क के माध्यम से पहली बार डिजिटल कॉल कर पाना संभव हो सका और आज दुनिया 3G, 4G का सफर तय करके 5G पर आ गई है। वहीं दूसरी ओर गली-गली में बिछाई जा रही भूमिगत इंटरनेट केबल (ऑप्टिकल फाइबर) शानदार हाई स्पीड इंटरनेट का अनुभव प्रदान कराती है। परंतु हाल फिलहाल में सेटेलाइट इंटरनेट जैसा शब्द सुनने में आता रहता है अतः आइए जानने का प्रयास करते हैं कि आखिर यह कैसी तकनीक है।
सैटेलाइट इंटरनेट क्या है ?
सैटेलाइट इंटरनेट किसी उपभोक्ता तक इंटरनेट पहुंचाने की एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें उपभोक्ता के डिवाइस तक इंटरनेट को पहुंचाने के लिए किसी सेल नेटवर्क टावर या केबल का उपयोग ना करके कृत्रिम उपग्रहों की सहायता ली जाती है। वर्तमान में यह सुविधा अभी परीक्षण के चरण में है। जिसका नेतृत्व एलन मस्क की कंपनी स्टार-लिंक कर रही है। यह कंपनी पृथ्वी के ध्रुवीय क्षेत्रों को छोड़कर संपूर्ण पृथ्वी पर सेटेलाइट इंटरनेट सुविधा शुरू करने जा रही है जो भारत समेत कई देशों में बुकिंग के लिए खोली जा चुकी है। स्टार लिंक ने शुरुआती चरण में कुल 1800 सैटेलाइट अंतरिक्ष में स्थापित किए हैं और इस व्यवस्था के संपूर्ण सेटअप के लिए उसका लक्ष्य कुल 42000 सैटेलाइट स्थापित करने का है। ताकि बिना किसी रूकावट के हाई स्पीड इंटरनेट उपभोक्ता तक पहुंचाया जा सके। वहीं इस क्षेत्र में ऐमेज़ॉन वनवेब और रिलायंस जैसी कुछ अन्य कंपनियां भी अपनी किस्मत आजमाने का सोच रही है।
सेटेलाइट इंटरनेट कैसे काम करता है ?
यह कुछ इसी तरह काम करता है जैसे आपका डिश टीवी सेट-टॉप बॉक्स काम करता है। अंतर बस इतना है कि आपका डिश टीवी सेट टॉप बॉक्स एक तरफा डाटा प्रेषित करता है जबकि इस व्यवस्था में दो तरफा डाटा संप्रेषण की व्यवस्था होती है। इस व्यवस्था में सैटेलाइट डिश के जरिए पृथ्वी का चक्कर लगा रहे कई सेटेलाइट में से एक को डाटा भेजा जाता है वहीं सभी सेटेलाइट एक दूसरे से लेजर बीम के जरिए जुड़े रहते हैं। लेजर बीम का सिग्नल अच्छा हो इसके लिए एक सैटेलाइट अपने आस पास के चार और सैटेलाइट्स से संपर्क साधता है। फिर वो सैटेलाइट्स अन्य चार सैटेलाइट्स से जुड़ते हैं। इस प्रकार आसमान में सैटेलाइट्स का एक जाल तैयार हो जाता है। तथा ये सैटेलाइट नेटवर्क अंतरिक्ष में प्रकाश की गति 3 लाख किलोमीटर प्रति सेकंड से एक दूसरे को डाटा स्थानांतरण करता रहता है। दूसरे शब्दों में कहें तो यह अंतरिक्ष के निर्वात में विद्युत चुंबकीय तरंगों की अधिकतम गति का पूरा फायदा उठाते हैं। यानी जहां पहले धरती में वा समुद्र में बिछी ऑप्टिकल फाइबर के जरिए डाटा भेजा जाता था अब वह काम अंतरिक्ष में लेजर बीम के जरिए हो रहा होता है। अब धरती पर आप के छत में लगे एक सैटेलाइट डिश द्वारा इस डाटा को पकड़ा जाता है और इसे राउटर पर भेजा जाता है वही राउटर से वाईफाई या केवल द्वारा जुड़े सभी डिवाइस जैसे मोबाइल कंप्यूटर आदि इंटरनेट से कनेक्ट हो जाते हैं। यदि इस व्यवस्था में इंटरनेट के स्पीड की बात करें तो 50 एमबीपीएस से लेकर 150 एमबीपीएस के बीच इंटरनेट स्पीड मिलती है। भविष्य में इसके 300 एमबीपीएस तक होने की उम्मीद है।
सैटेलाइट इंटरनेट के क्या लाभ हैं ?
- आज इंटरनेट की पहुंच को मौलिक अधिकार के रूप में देखा जाता है और वर्तमान स्थितियों को देखते हुए शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र इंटरनेट पर निर्भर हो गए हैं परंतु जहां भारत और भारत जैसे कई देशों के दुर्गम इलाकों मे खराब अवसंरचना के चलते परंपरागत इंटरनेट सेटअप को बैठाना अत्यंत दुष्कर कार्य होता है वहीं इस तकनीक के माध्यम से दुर्गम इलाकों तक भी इंटरनेट की पहुंच संभव हो सकेगी।
- चूंकि अंतरिक्ष का निर्वात विद्युत चुंबकीय तरंगों की गति को धीमा नहीं करता है। अतः वर्तमान में ऑप्टिकल फाइबर पर आधारित तकनीक या किसी ब्रॉडबैंड केबल तकनीक की अपेक्षा ऑनलाइन शेयर ट्रेडिंग करने वाले निवेशकों के लिए यह व्यवस्था तीव्र इंटरनेट उपलब्ध कराती है।
- भूकंप जैसी किसी आपदा के आने के बाद परंपरागत इंटरनेट कि बहाली करना बहुत ही कठिन व खर्चीला कार्य होता है। परंतु सैटेलाइट इंटरनेट के साथ यह समस्या नहीं है इसे पुनर्स्थापित करना बहुत आसान काम है।
- चूंकि यह दोतरफा संचार के लिए उपग्रह डिश का उपयोग करता है, इसलिए टेलीफोन केबल या तार लाइनों की आवश्यकता नहीं होती है।
सैटेलाइट इंटरनेट की चुनौतियां क्या हैं ?
- इस व्यवस्था को संचालित करने के लिए अंतरिक्ष में बहुत सारे सेटेलाइट्स भेजने होंगे अतः कक्षा में इतने ज्यादा सेटेलाइट होंगे तो उनके आपस में टकराने का खतरा भी बढ़ेगा जिससे अंतरिक्ष जगमगा जाएगा और खगोल विदों के लिए रात का आसमान प्रदूषित हो जाएगा और ओजोन परत को क्षति भी पहुंचेगी वहीं खराब सैटेलाइट अंतरिक्ष में कचरे की समस्या भी उत्पन्न करते हैं।
- चूंकि इस व्यवस्था के संचालन के लिए एक सैटेलाइट डिश एंटीना की आवश्यकता होती है जो सेटेलाइट की ओर एक निश्चित एंगल में घूमा हुआ स्थिर रहता है। अतः इसका उपयोग कर पाना घर या ऑफिस तक ही सीमित है।
- यह सेवा डिश टीवी की तरह मौसम के अधीन है इसका मतलब यह है कि गहरे बादल भारी बारिश या तेज हवा के चलते आपका इंटरनेट कई घंटों के लिए ठप यानी कनेक्शन बाधित हो सकता है या आपके इंटरनेट की स्पीड धीमी हो सकती है।
- प्रारंभिक सेटप के महंगा होने के साथ-साथ मरम्मत के रूप में भी पारंपरिक इंटरनेट सेवाओं की तुलना में सेट-अप शुल्क और उपकरण अधिक महंगे होते हैं।
- सेटेलाइट इंटरनेट में बर्तमान 5G सेवा की तुलना में इंटरनेट कनेक्शन की गति अपेक्षाकृत धीमी होती है। परंतु समय के साथ सुधार संभव है।
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