हिमालय प्रदेश की लकड़ियां
हिमालय पर्वत पर उगने वाले वनों को हम सामान्यतया पर्वतीय वन (Mountaineous Forests) के नाम से जानते हैं। इनका विस्तार असम से कश्मीर तक पाया जाता है तथा ये वन ऊंचाई के साथ साथ बदलते रहते हैं क्योंकि ऊंचाई के साथ-साथ जलवायु के तत्वों की मात्रा में अंतर आता जाता है। इनकी विशेषताओं की बात करें तो इन वृक्ष वा वनों की श्रेणी में ऊंचाई के अनुसार भिन्नता परिलक्षित होती है। नीचे के क्षेत्र में सदाबहार व मध्य में शीतोष्ण तथा ऊंचाई में जाने पर कोंणधारी वन पाए जाते हैं। इन वनों से अनेक उत्पाद के साथ दवाइयों हेतु जड़ी बूटी कच्चे माल के रूप में प्राप्त होती हैं, तथा यहां विशेष उपयोगी व मूल्यवान लकड़ियां भी प्राप्त होते हैं। आज हम यहां परीक्षोपयोगी दृष्टि से हिमालय प्रदेश की प्रमुख पांच लकड़ियों के बारे में जानेंगे।
श्वेत सनोवर (Silver Fir)
श्वेत सनोवर या सिल्वर फर नुकीली पत्ती वाले वृक्ष होते हैं जो 2200 - 3000 मीटर तक की ऊंचाई पर पाए जाते हैं। यह वृक्ष पश्चिमी हिमालय में कश्मीर से झेलम तक और पूर्वी हिमालय में चित्राल से नेपाल तक मिलते हैं। इन वृक्षों की ऊंचाई 45 मीटर तक होती है और मोटाई 7 मीटर तक होती है। इन वृक्षों के मोटे तने वा शाखा की लकड़ी का उपयोग हल्की पेटियां, पैकिंग, तख्ती, माचिस कागज की लुगदी तथा फर्श में तख्ताबंदी आदि करने में होता है।
स्प्रूस (Spruce)
स्प्रूस प्रायः 2100 से 3600 मीटर की ऊंचाई तक मिलने वाला एक कोंणधारी (Pinophyta) सफेद और कोमल वृक्ष होता है। उत्तरी भारत में यह लकड़ी कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में मिलती है इसका वृक्ष 60 मीटर से भी अधिक ऊंचा और 6 से 9 मीटर तक मोटा होता है। इसकी लकड़ी का उपयोग पियानो और वायलिन के निर्माण के साथ नावों, हवाई जहाज और बैरल आदि के निर्माण में किया जाता है। इसे क्रिसमस ट्री के रूप में भी उगाया जाता है।
देवदार (Cedrus)
देवदार का वृक्ष 30 मीटर ऊंचा और 6 से 10 मीटर तक मोटा होता है। यह हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले में तथा गढ़वाल के पश्चिम में हिमालय प्रदेश की पहाड़ियों में पाया जाता है। इसकी लकड़ी साधारणतः कठोर भूरी पील, सुगंध युक्त तथा टिकाऊ होती है यह सभी प्रकार के निर्माण कार्यों में प्रयुक्त होने वाली इमारती लकड़ी है। तथा इसके सुगंधित होने के चलते इससे सुगंधित तेल भी निकाला जाता है। उत्तराखंड के जंगलों में हर साल कई हजार देवदार के सूख पेड़ कटते हैं। इन पेड़ों की कटाई उत्तराखंड वन निगम द्वारा किया जाता है। पेड़ कटने से निकले छिलके का उपयोग तेल निकालने में किया जाता है तथा इस तेल के प्रयोग से विभिन्न प्रकार के दर्द निवारक बाम आदि बनाए जाते हैं।
चीड़ (Pine)
यह एक नुकीली पत्ती वाला सदाबहार वृक्ष है जो 1200 से 2100 मीटर की ऊंचाई पर कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तरांचल में हिमालय के उत्तरी धढालों पर पाया जाता है इस वृक्ष की ऊंचाई 18 से 20 मीटर तक होती है। चीड़ की लकड़ी का अपना काफी आर्थिक महत्व होता है। इस लकड़ी का उपयोग अनेकाने कार्यों में, जैसे पुल निर्माण में, बड़ी बड़ी इमारतों के निर्माण में, रेलगाड़ी की पटरियों के निर्माण के लिये, कुर्सी, मेज, संदूक और खिलौने इत्यादि बनाने में होता है।
नीला पाइन (Blue Pine)
नीला पाइन के वृक्ष 1800 से 3600 मीटर की ऊंचाई तक पाए जाते हैं। ये अधिकतर उत्तरी हिमाचल प्रदेश तथा संपूर्ण महाहिमालय की ओर वाले भागों में पाए जाते हैं। नीला पाइन का वृक्ष 30 से 45 मीटर ऊंचा और तनाव 1 से 4 मीटर मोटा होता है यह साज सामान, बढ़िया बिरोजा, तथा तारपीन का तेल आदि बनाने के काम आता है।
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