Earth's Magnetic Field

 पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र

आपने यह अवश्य ध्यान दिया होगा कि जब हम किसी चुंबक को इस प्रकार लटकाते हैं कि वह क्षैतिज तल में घूमने के लिए स्वतंत्र हो तो वह सदैव भौगोलिक उत्तर दक्षिण दिशा की ओर संकेत करता हुआ ठहरता है। और आप यह जानते हैं कि चुंबक के समान ध्रुव आपस में एक दूसरे को प्रतिकर्षित करते हैं तथा असमान ध्रुव एक दूसरे को आकर्षित करते हैं। अतः कहने का भाव यह है कि किसी चुंबक का सदैव उसी दिशा में ठहरना यह सुनिश्चित करता है कि उसके आसपास किसी अन्य चुंबक की बल रेखाएं मौजूद हैं जो की स्वयं हमारे पृथ्वी के ध्रुवों से निकल रही हैं। यानी कि हमारी पृथ्वी का स्वयं का चुंबकीय क्षेत्र है तथा वह एक चुंबक की भांति व्यवहार करती है जिसकी पुष्टि के लिए कुछ और तथ्य दिए जा सकते हैं। जैसे यदि हम किसी लोहे की छड़ को पृथ्वी के भीतर उत्तर दक्षिण दिशा में रखकर गाड़ देते हैं तो कुछ दिनों में वह स्वयं एक चुंबक बन जाती है यह तभी संभव है जबकि पृथ्वी स्वयं एक चुंबक की तरह व्यवहार कर रही हो। अथवा जब किसी चुंबक को एक क्षैतिज तल में उसका उत्तरी ध्रुव भौगोलिक उत्तर की ओर रखकर चुंबकीय क्षेत्र रेखाएं खींची जाती है तो चुंबक की निरक्षीय रेखा पर चुंबक के दोनों और उदासीन बिंदु प्राप्त होते हैं इसी प्रकार चुंबक को क्षैतिज दल में दक्षिणी ध्रुव को भौगोलिक उत्तर की ओर करके क्षेत्र रेखाएं खींचने पर चुंबक की अक्षीय रेखा पर दो उदासीन बिंदु प्राप्त होते हैं प्रत्येक उदासीन बिंदु पर परिणामी चुंबकीय क्षेत्र शून्य होता है और परिणामी चुंबकीय क्षेत्र के शून्य होने का तात्पर्य यह है कि उदासीन बिंदु पर चुंबक के कारण उत्पन्न स्वयं का चुंबकीय क्षेत्र किसी अन्य चुंबकीय क्षेत्र के बराबर तथा विपरीत हो जा रहा है यह अन्य चुंबकीय क्षेत्र वास्तव में पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र होता है।



       यदि हम एक चुंबकीय सुई को किसी धागे की सहायता से इस प्रकार लटका लें कि वह ऊर्ध्वाधर तल में स्वतंत्रता पूर्वक घूमने के लिए स्वतंत्र हो तथा उसे लेकर पृथ्वी के भौगोलिक ध्रुव से होते हुए पृथ्वी का एक पूर्ण चक्कर लगाएं तो हम पाते हैं कि इस पृथ्वी में चुंबकीय सुई दो स्थानों पर सतह के लंबवत अर्थात ऊर्ध्वाधर हो जाती है तथा दो स्थानों पर पृथ्वी की सतह के समांतर अर्थात क्षैतिज हो जाती है अन्य स्थानों पर यह क्षेत्र से भिन्न भिन्न कोण बनाती हुई ठहरती है। इस प्रकार स्पष्ट है की वे स्थान जहां चुंबकीय सुई ऊर्ध्वाधर हो जाती है पृथ्वी के चुंबकीय ध्रुव (magnetic poles) कहलाते हैं तथा वह स्थान जहां चुंबकीय सुई क्षैतिज हो जाती है उन से गुजरने वाली रेखा चुंबकीय निरक्ष (magnetic equator) कहलाती है।


पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र की व्याख्या

       हमारे पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र इस प्रकार व्यवहार करता है जैसे कि पृथ्वी के केंद्र पर एक बहुत बड़ा दंड चुंबक रखा हो जिसका दक्षिणी ध्रुव भौगोलिक उत्तर में तथा उत्तरी ध्रुव भगोली दक्षिण में स्थिति हो। अब आपके मन में प्रश्न उठ रहा होगा कि आखिर ध्रुवों का निर्धारण कैसे किया गया तो मैं आपको यह स्पष्ट कर देना चाहूंगा कि ऐसा एक सामान्य परिपाटी के अनुसार माना जाता है क्योंकि जब हम एक दंड चुंबक को स्वतंत्रता पूर्वक लटकाते हैं तो वह हमेशा उत्तर व दक्षिण दिशा की ओर ठहरता है ऐसे में हम उस चुंबक के दोनों ध्रुवों को क्रमशः उत्तरी ध्रुव‌ तथा दक्षिणी ध्रुव कहते हैं अब आप जानते हैं कि समान ध्रुव आपस में एक दूसरे को प्रतिकर्षित करते हैं जबकि असमान ध्रुव एक दूसरे को आकर्षित करते हैं अतः पृथ्वी के उत्तर दिशा में दक्षिणी ध्रुव होगा जो चुंबक के उत्तरी ध्रुव को आकर्षित कर रहा है तथा दक्षिण दिशा में उत्तरी ध्रुव होगा जो चुंबक के दक्षिणी ध्रुव को आकर्षित कर रहा है। वास्तव में भौगोलिक ध्रुव पृथ्वी के चुंबकीय ध्रुव के संपाती नहीं होते हैं अपितु कुछ हटकर होते हैं पृथ्वी का चुंबकीय अक्ष पृथ्वी के घूर्णन अक्ष से 17⁰ का कोण बनाता है। वा पृथ्वी का चुंबकीय दक्षिणी ध्रुव कनाडा में स्थित भौगोलिक उत्तरी ध्रुव से लगभग 2240 किलोमीटर की दूरी पर 70.75 ⁰ उत्तरी अक्षांश और 96⁰ पश्चिमी देशांतर पर तथा पृथ्वी का चुंबकीय उत्तरी ध्रुव भौगोलिक दक्षिणी ध्रुव से लगभग 2240 किलोमीटर की दूरी पर 73⁰ दक्षिणी अक्षांश और 155⁰ पूर्वी देशांतर पर होता है। प्रयोगों द्वारा यह देखा गया है कि इन ध्रुवों की स्थिति सदैव स्थिर ना होकर धीरे-धीरे बदलती रहती है। स्पष्टतः पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र की क्षेत्र रेखाएं पृथ्वी के चुंबकीय ध्रुव के समीप पृथ्वी की सतह के लंबवत तथा चुंबकीय निरीक्षक के समीप पृथ्वी की सतह के समांतर होती हैं परंतु किसी छोटे स्थान में पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र की क्षेत्र रेखाएं परस्पर समांतर तथा समदूरस्थ प्रतीत होती हैं जो सदैव भौगोलिक दक्षिण से भौगोलिक उत्तर की ओर होती है अतः सीमित प्रायोगिक स्थान में पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र एक समान माना जा सकता है तथा चुंबकीय क्षेत्र रेखाएं परस्पर समदूरस्थ तथा समांतर मानी जा सकती हैं।



पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र का कारण

       वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र के मूल कारण (Cause of earth's magnetism) के बारे में भिन्न-भिन्न 4 मत दिए हैं।

(१.) प्राचीन वैज्ञानिक गिलबर्ट का मत था कि पृथ्वी के अंदर एक बड़ा चुंबक अर्थात स्थाई रूप से चुंबकित पदार्थ हमेशा मौजूद रहता है जिस कारण से पृथ्वी एक चुंबक की भांति व्यवहार करती है। परंतु ऐसा संभव नहीं है क्योंकि आप जानते हैं कि पृथ्वी के अंदर का तापमान इतना अधिक है कि वहां किसी भी चुंबक में चुंबकत्व रह ही नहीं सकता है इसके अतिरिक्त पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में नियमित और अनियमित परिवर्तन होते रहते हैं तथा यह भी पाया गया है कि जब जब सूर्य के धब्बे उत्पन्न होते हैं तब तब पृथ्वी पर चुंबकीय तूफान आता है अतः पृथ्वी का जो कुछ चुंबकत्व है वह केवल पृथ्वी के बाहरी पृष्ठ जहां ताप बहुत कम है वहीं तक ही सीमित होना चाहिए।


(२.) सन 1849 में वैज्ञानिक ग्रोवर ने एक मत दिया था कि पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र, उसके बाहरी पृष्ठ के निकट चारों ओर बहने वाली विद्युत धाराओं के कारण होता है। उनका मानना था कि ये धाराएं सूर्य के कारण उत्पन्न होती हैं। भौगोलिक निरक्ष के समीप के स्थानों से गर्म वायु ऊपर उठकर उत्तरी व दक्षिणी गोलार्ध की ओर जाती हुई आवेशित हो जाती है जिससे उनमें धाराएं बहने लगती हैं यह धाराएं ही पृथ्वी के बाहरी पृष्ठ के समीप उपस्थित लौह चुंबकीय पदार्थों को चुंबकित कर देती हैं।


(३.) सन 1939 में जर्मनी के वैज्ञानिक एलसेसर का मत था कि पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र का मूल कारण पृथ्वी के भीतर उसके केंद्रीय क्रोड में अनेक चालक पदार्थों जैसे लोहा और निकिल का पिघली हुई अवस्था में उपस्थित होना है। पृथ्वी का अपने अक्ष के परितः घूमने के कारण उसकी अर्ध-द्रव क्रोड में मंद संवहन धारा उत्पन्न हो जाती हैं जिसके फलस्वरूप इसके भीतर स्वउत्तेजित डायनमों की क्रिया होने लगती है तथा विद्युत धारा उत्पन्न हो जाती है इन विद्युत धाराओं से संबद्ध चुंबकीय क्षेत्र ही पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र है।


(४.) वैज्ञानिकों का आधुनिक मत यह है कि वायुमंडल में गैसें आयनित अवस्था में रहती हैं क्योंकि सूर्य से आने वाली उच्च ऊर्जा की किरणें वायुमंडल की ऊपरी परतों में परमाणुओं से टकराकर उन्हें आयनित कर देती हैं। जिसके अतिरिक्त वायुमंडल की रेडियो एक्टिवता तथा कॉस्मिक किरणों के कारण भी गैसों का आयनीकरण हो जाता है। अतः पृथ्वी के अपने अक्ष के परितः घूमने के कारण प्रबल विद्युत धाराएं उत्पन्न हो जाती हैं जिनके कारण पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है।


वास्तव में पृथ्वी के चुंबकत्व संबंधी घटनाएं इतनी जटिल तथा अनियमित है कि पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र का कारण आज तक स्पष्ट रूप से नहीं समझाया जा सका है।

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