Photo-Electric Cell And It's Uses

प्रकाश-विद्युत् सेल


प्रकाश-विद्युत् सेल क्या है ?

प्रकाश विद्युत सेल या फोटोइलेक्ट्रिक सेल प्रकाश विद्युत प्रभाव या प्रकाश-विद्युत उत्सर्जन के सिद्धांत पर आधारित एक युक्ति है जिसे इलेक्ट्रॉन उत्सर्जक सेल भी कहा जाता है।

प्रकाश-विद्युत् सेल की संरचना:

इलेक्ट्रॉन उत्सर्जक सेल कांच अथवा क्वार्ट्ज का बना हुआ एक बल्ब होता है जिसके अंदर के पृष्ठ मे कुछ भाग को छोड़कर शेष भाग में किसी छारीय धातु जैसे सोडियम या सीजियम आदि की पतली परत लपेट दी जाती है। सोडियम या सीजीयम लेपित यह पर्त प्रकाश सुग्राही होने के कारण कैथोड C का कार्य करती है। तथा बल्ब के मध्य भाग में एक वृत्ताकार अथवा सीधा धातु का तार लगा रहता है जो एनोड P का कार्य करता है। और बल्ब में कोई अक्रिय गैस जैसे आर्गन या निऑन आदि भर दी जाती हैं अथवा बल्ब को प्रायः निर्वातित छोड़ दिया जाता है। अब इसे आवश्यकतानुसार उचित परिपथ में जोड़ दिया जाता है। एक सामान्य परिपथ में कैथोड C वा एनोड P का संबंध एक बैटरी E तथा परिवर्ती प्रतिरोध Rh से बनाए गए विभव विभाजक से कर देते हैं। तथा लोड R के सिरों को प्रवर्धक से जोड़ देते हैं। आप परिपथ को नीचे चित्र में देख सकते हैं।

कार्य विधि:

जब सोडियम अथवा सीजीएम धातु से लेपित परत यानी कि कैथोड C में धातु की देहली आवृत्ति से अधिक आवृत्ति का प्रकाश पड़ता है तो इससे फोटो इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित होते हैं तथा ये इलेक्ट्रॉन बैटरी की सहायता से कैथोड के सापेक्ष धन विभव पर रखे गए एनोड P द्वारा आकर्षित कर लिए जाते हैं (चूंकि असमान आवेश एक दूसरे को आकर्षित करते हैं) जिसके फलस्वरूप लोड R में धारा बहने लगती है। चूंकि प्रकाश विद्युत धारा बहुत कमजोर होती है अतः लोड R के सिरों पर प्राप्त विभव को प्रवर्धक पर भेज कर आवश्यकतानुसार प्रवर्धित कर लिया जाता है। यदि आपतित प्रकाश की तीव्रता बढ़ाई जाती है तो कैथोड से उत्सर्जित फोटो इलेक्ट्रानों की संख्या भी बढ़ जाती है। दूसरे शब्दों में कहें तो प्रकाश विद्युत सेल में प्रकाश विद्युत धारा आपतित प्रकाश की तीव्रता के ठीक अनुक्रमानुपाती होती है हालांकि यदि बल्ब में कोई अक्रिय गैस भर दी जाती है तो प्रकाश विद्युत सेल में गैस के आयनीकरण के कारण प्रकाश विद्युत धारा कुछ बढ़ जाती है अतः धारा ठीक आपतित प्रकाश की तीव्रता के अनुक्रमानुपाती नहीं होती है, अपितु कुछ अधिक होती है।

प्रकाश-विद्युत् सेल के उपयोग:

फोटो सेल के अनेक उपयोग हैं लेकिन हम यहां परीक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण मुख्य उपयोगों की चर्चा करेंगे

टेलीविजन में:

           टेलीविजन में किसी चित्र से आने वाले प्रकाश को एक स्कैनिंग चकती की सहायता से फोटो सेल पर डालते हैं जिससे हमें परिवर्ती विद्युत धारा प्राप्त हो जाती है तत्पश्चात इसे विद्युत चुंबकीय तरंगों में बदल कर वाहक तरंगों द्वारा मॉडुलित करके दूर स्थानों पर भेजा जाता है।

चोर सूचक घंटी में:

           बैंक खजानों आदि मे फोटो सेल का उपयोग चोरी की सूचना देने के लिए भी किया जाता है। इसके लिए तिजोरी के पास फोटो सेल रख देते हैं तथा फोटो सेल का संबंध किसी विशेष स्थान पर रखी एक विद्युत घंटी से कर देते हैं जब चोर की वजह से तिजोरी पर लगे फोटो सेल में प्रकाश पड़ता है तो फोटो सेल से विद्युत धारा घंटी में प्रवाहित होने लगती है जिससे घंटी बज जाती है तथा चोरी की सूचना मिल जाती है।

प्रकाश विद्युत गणकों में:

           फोटो सेल का उपयोग किसी मशीन द्वारा बनाए गए पुर्जों अथवा किसी कमरे में प्रवेश करने वाले व्यक्तियों को स्वतः गिनने के लिए भी किया जाता है। इस विधि में जब कोई पुर्जा अथवा व्यक्ति फोटो सेल के सामने से गुजरता है तो क्षण भर के लिए फोटो सेल में पड़ने वाला प्रकाश रुक जाता है जिससे परिपथ में धारा का प्रवाह बंद हो जाता है। अब इसका अभिलेख एक गणक पर अंकित कर लिया जाता है।

स्वचालित स्विचों में:

           स्वचालित स्विचों की आवश्यकता सामान्यता सड़क पर लगी बत्तियों को चालू या बंद करने के लिए होती है। ऐसे में सड़क पर लगे बल्बों को एक साथ जलाने अथवा बुझाने के लिए इसका संबंध एक स्विच से करते हैं जो एक रिले से जुड़ा रहता है रिले को फोटो सेल से नियंत्रित किया जाता है सूर्यास्त होने पर जब फोटो सेल पर सूर्य का प्रकाश पड़ना बंद हो जाता है तो परिपथ में धारा रुक जाती है तथा रिले द्वारा सभी बत्तियों का स्विच ऑन हो जाता है वहीं सूर्योदय होने पर जैसे ही फोटो सेल पर सूर्य का प्रकाश पड़ता है परिपथ में धारा बहने लगती है जिससे रिले द्वारा स्विच ऑफ हो जाता है।

स्वचालित दरवाजों में:

           फोटो सेल का उपयोग दरवाजों को स्वतः खोलने अथवा बंद करने के लिए भी किया जाता है इन दरवाजों को एक रिले स्विच द्वारा नियंत्रित किया जाता है जो प्रकाश विद्युत सेल के माध्यम से संचालित होती है।

कैमरे के उद्भासनमापी में:

           कैमरे से फोटो खींचते समय फिल्म का उचित समय तक उद्भासन करने के लिए उद्भासनमापी का उपयोग किया जाता है। फोटो सेल इसका एक मुख्य भाग होता है। कैमरे में फोटो सेल एक बंद काले डिब्बे में रखा जाता है तथा सटर द्वारा इसे प्रकाश किरणों से वंचित रखा जाता है किसी दृश्य का फोटो लेने से पहले उस दृश्य की ओर उद्भासनमापी को करके इसका शटर खोल देते हैं। शटर से जितने समय तक प्रकाश फोटो सेल पर गिरता है उसके अनुसार ही परिपथ में लगे धारामापी में पाठ आ जाता है अतः धारामापी के पाठ के अनुसार उद्भासन के समय को ठीक-ठीक समंजित कर सकते हैं।

सिनेमा में ध्वनि पुनरुत्पादन में:

           सिनेमा फिल्म के एक किनारे पर ध्वनि पट्टी बनी होती है जिस पर ध्वनि अंकित करने के लिए ध्वनि के उच्चावचनों को माइक्रोफोन द्वारा परिवर्ती विद्युत धारा में बदलकर इस धारा को विशेष प्रकार के बल्ब में प्रवाहित करके धारा के उच्चावचनों के संगत विभिन्न तीव्रता का प्रकाश प्राप्त कर लेते हैं। अब प्रकाश की तीव्रता के इन उच्चावचनों को सिनेमा फिल्म पर एक कोर पट्टी के रूप में अंकित कर लिया जाता है। ध्वनि के पुनरूत्पादन के लिए जब सिनेमा प्रक्षेपित्र यानी कि प्रोजेक्टर में फिल्म चलती है तो एक प्रबल प्रकाश बल्ब से जिसके तंतु में एक सीधा क्षैतिज तार लगा होता है फिल्म के साथ लगी ध्वनि पट्टी पर प्रकाश डाला जाता है। वहीं ध्वनि पट्टी के दूसरी ओर एक फोटो सेल लगा रहता है। इस प्रकार ध्वनि पट्टी से पार होकर आने वाली प्रकाश की किरणें फोटो सेल पर गिरती हैं अतः पट्टी पर अंकित प्रकाश तीव्रता के उच्चावचनों के अनुसार ही प्रकाश की भिन्न-भिन्न तीव्रता फोटो सेल पर गिरती है जिससे इसके अनुसार परिवर्तित विद्युत धारा उत्पन्न हो जाती है अब प्रवर्धक द्वारा इस परिवर्ती धारा को प्रवर्धित करके लाउडस्पीकर में भेजकर ध्वनि को पुनः उत्पादित कर लेते हैं।

विद्युत ऊर्जा प्राप्त करने के लिए:

           इसी सिद्धांत का प्रयोग करके एक पट्टी में विभिन्न प्रकाश विद्युत सेलों को श्रेणी क्रम व समांतर क्रम में लगा कर एक सोलर प्लेट का निर्माण कर लिया जाता है अब जब इस प्लेट में सूर्य का प्रकाश पड़ता है तो इससे विद्युत धारा प्राप्त कर ली जाती है तथा इस धारा का प्रयोग अंतरिक्ष यान में लगी बैटरी को चार्ज करने में किया जाता है। और अन्य कामों में भी किया जा सकता है।

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