Humans are affecting the evolution of animals

 मनुष्य पशुओं के क्रम विकास

को प्रभावित कर रहे हैं।

मनुष्य के मस्तिष्क में हमें अपने आप को एक जानवर के रूप में सोचना अजीब लगता है। परन्तु ये सच है की प्राकृति ने अपने संसाधनों पर मनुष्य को उतना ही अधिकार दिया है जितना की अन्य जीवो को। परन्तु एक प्रश्न यह उठता है की प्रकृति ने मनुष्य को एक शक्तिसाली मस्तिष्क क्यों दिया, वो शायद इसलिए दिया ताकि मनुष्य प्राकृति से संवाद स्थपित कर सके ताकि पर्यावरणीय संतुलन बना रहे। परन्तु मनुष्य ने अपनी बुद्धि का इस्तेमाल संसाधनों में एकाधिकार करके उसके अधिक से अधिक दोहन के लिए किया है। और आज मनुष्य पृथ्वी पर सबसे बड़ी भूभौतिकीय शक्ति बन गया है। पृथ्वी पर मनुष्यों की संख्या पिछले 200 से 300 वर्षों में निश्चित रूप से बढ़ी है। यदि एक अनुमानित आंकड़ा देखें तो दो हजार साल पहले पृथ्वी पर 300 मिलियन मनुष्य थे वहीं एक हजार साल पहले पृथ्वी पर 310 मिलियन इंसान थे, और 260 साल पहले पृथ्वी पर 790 मिलियन इंसान थे। पिछले 260 वर्षों में मानव आबादी में 6.1 अरब लोगों की वृद्धि हुई है। वर्तमान में पृथ्वी पर 6.9 बिलियन मानव हैं, और मानव जनसंख्या 2050 तक 9.3 बिलियन होने का अनुमान है।


         हाल ही में हुए कुछ शोधों से यह पता चला है कि मनुष्य ने कुछ पशुओं के इवोल्यूशन को भी प्रभावित किया है। हालांकि मनुष्य प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से पशु विकास को बहुत पहले से प्रभावित करता रहा है। आमतौर पर प्राकृतिक रूप से उद्भव (Evolution) की प्रक्रिया धीमी चलती है लेकिन हाल ही में हुई रिसर्च यह बताती हैं कि इंसानी दखल उसे तेज कर सकता है। अफ्रीका के सवाना में हाथियों में बदलाव इसकी मिसाल हो सकती है। यहां हाथियों का बिना बड़े दांत का हो जाना और केवल 15 सालों में हो जाना बहुत हैरान करने वाला नतीजा है।


elephant
बड़े दांत वाला हांथी

         कई वर्षों की अवैध शिकार गतिविधियों के बाद अध्ययनों से पता चला है कि बिना दांत वाले अफ्रीकी हाथियों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है। इसका कारण यह है कि शिकारियों ने 1977 से 1992 तक मोजाम्बिक गृहयुद्ध के दौरान विशाल दांतों वाले बहुत सारे हाथियों को मार डाला था। मरने वाले हाथियों में बड़े दांत वाले मादा हाथियों की संख्या सबसे ज्यादा थी। शोधकर्ताओं का कहना है कि युद्ध के बाद बची मादाओं द्वारा अगली पीढ़ी को जीन्स सौंपने के मामले में चौंकाने वाले नतीजे मिले हैं। इन मादाओं की आधी मादा संतानें अब बिना बाहर के दातों के पैदा हो रही हैं। इससे भी अजीब बात यह है कि दो तिहाई संतानें मादा ही पैदा हो रही हैं। युद्ध से पहले लगभग 20 प्रतिशत हाथी दांत रहित थे और अब लगभग आधी मादा हाथी बिना दाँत के हैं। अब वैज्ञानिक इसके और ज्यादा प्रभावों का अध्ययन करना चाहते हैं।


अफ्रीकन हांथी
बिना दांत का अफ्रीकन हांथी

       ट्रेंड्स इन इकोलॉजी एंड इवोल्यूशन में एक अध्ययन में पाया गया कि अब चमगादड़ पहले की अपेक्षा बड़े पंख उगा रहे हैं। और खरगोश पहले से ज्यादा लंबे कान उगा रहे हैं। ऐसा होने के कारण के तौर पर इन दोनों के आसपास की हवा में अधिक गर्मी यानी की संभावित तौर पर ग्लोबल वार्मिंग को माना जा रहा है। साइंस ने इन पंक्तियों पर और सबूत प्रकाशित किए हैं। बढ़ते तापमान और वर्षा के पैटर्न में बदलाव के परिणामस्वरूप, अमेज़ॅन वर्षावन में एक दूरस्थ पैच से पक्षियों की 77 प्रजातियों का वजन कम देखा गया और 40 वर्षों की अवधि में उनके पंख अधिक लंबे थे।


स्पष्ट रूप से, मनुष्यों की अतीत और वर्तमान की गतिविधियों ने कई प्रजातियों के विकासवादी इतिहास को विलुप्त होने की कगार पर पहुंचा दिया है या उनके इवोल्यूशन को प्रभावित किया है। भविष्य के विकासवादी परिवर्तन और विलुप्त होने की डिग्री अनिश्चित है। शिक्षा एक ऐसा तंत्र हो सकता है जो मानवजनित गतिविधियों को धीमा करने के लिए शुरुआत में सफल भूमिका निभा सकता है। जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से वैश्विक जीवों के विकास को प्रभावित कर रहे हैं उनके लिए विकास शिक्षा, पर्यावरण शिक्षा और सामान्य रूप से विज्ञान शिक्षा की आवश्यकता है। साथ ही उनकी आवश्यकता है जो अन्य जीवों के विकास और जीवमंडल पर मनुष्यों के लगातार बढ़ते प्रभाव को संबोधित करते हैं और उसके संतुलन पर दृढ़ता से जोर देते हैं।

एक टिप्पणी भेजें

Post a Comment (0)

और नया पुराने