how did our timekeeping system come about

हमारा टाइमकीपिंग सिस्टम

कैसे आया

timekeeping system


वर्तमान में समय की गणना के सिस्टम से आप सभी परिचित हैं। पर क्या आप जानते हैं की आखिर क्यों एक दिन में 24 घण्टे होते हैं और हर घंटे में 60 मिनट होते हैं। कहने का तात्पर्य ये है की ये बात इंसान को कब और कैसे पता चली, या फिर उसने कैसे तय किया की एक घंटे में 60 मिनट ही होंगे? तो चलिए आज इस ब्लाग में यही पता लगाते हैं।


आप को जानकर आश्चर्य होगा परन्तु ये सच है की यह प्रणाली आज से लगभग 5000 साल पहले, 3000 ई.पू. दो नदियों दजला और फरात के बीच बसी मेसोपोटामिया की सभ्यता में बसे बेबीलोन के लोगों द्वारा विकसित की गई एक प्राचीन प्रणाली पर आधारित है। इसके लिए उन्हों ने बाएं हाथ के अंगूठे से हाथ की बाकी चार अंगुलियों के तीन-तीन हिस्सों को गिना। इस प्रकार उन्हें कुल जोड़ का अंक बारह प्राप्त हुआ। 12 अंक को बेबीलोन के लोगों ने एक पवित्र अंक माना। हालाकि उस समय लोगों को यह खगोलीय ज्ञान नहीं था की एक दिन और रात में पृथ्वी सूर्य का एक चक्र पूरा करती थी परन्तु उन्हों ने दिन और रात को 12-12 हिस्सों में बांट दिया।


अब सवाल यह है की 1 घंटे में 60 मिनट होंगे यह कैसे तय हुआ? इसके लिए बेबीलोन वालों ने अपने दाएं हांथ का इस्तेमाल किया और अपने दाएं हांथ के अंगूठे सहित पांचों उंगलियो से बाएं हांथ की उन्ही चारों उंगलियों के तीनों हिस्सों को गिना इस प्रकार उन्हें कुल योग 60 प्राप्त हुआ। परन्तु उन्हें तब भी समय की सटीक जानकारी नहीं थी सामान्य जन मानस के लिए 1 घंटे के 60 हिस्से सैद्धांतिक ही रहे उन्हें वास्तव में 1 मिनट की तरह प्रयोग में नहीं लाया जा सका परन्तु खगोल शास्त्रियों द्वारा 60 के इस अंक को अपने गणनाओं के अधार के तौर पर इस्तेमाल किया गया। 


इसके बाद पेंडुलम के आविष्कार ने 60 के अंक को समय की गणना में महत्वपूर्ण बनाया ठीक उसी समय इंसान ने समय के छोटे छोटे हिस्सों की सटीक जानकारी देने वाला यंत्र यानी की घड़ी का आविष्कार किया। घड़ी के आविष्कार होने के बाद दिन और रात को अलग अलग गिनने के बजाय दिन-रात मिलाकर 24 घण्टे का दिन आस्तित्व में आया। इस प्रकार लंबे काल से चली आ रही यह व्यवस्था अब तक जारी है।

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