Atom and its structure (परमाणु और उसकी संरचना)

परमाणु


क्या आपने कभी सोचा है की हमारे चारों ओर दिख रही ये रंगीन दुनिया अर्थात भौतिक जगत की हर वस्तु कैसे बनी है? उसकी संरचना कैसी है? लोहा, सोना, चांदी, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन आदि तत्वों का सबसे छोटा अविभाज्य टुकड़ा अर्थात उनकी संरचनात्मक इकाई क्या है? उस टुकड़े (इकाई) की संरचना कैसी है? 

       अब आप अपने घर की दीवार के बारे में विचार कीजिए कि वह किस प्रकार एक-एक ईंट के व्यवस्थित क्रम में रखने से बनी है अतः मोटे तौर पर ईंंट को दीवार की संरचनात्मक इकाई कह सकते हैं 
     इसी प्रकार अब एक लोहे के टुकड़े पर विचार कीजिए कि क्या आप उसके सबसे छोटे अविभाज्य टुकड़ेे की कल्पना कर सकते हैं?
     परमाणु किसी तत्व का वह सूक्ष्मतम कण है जिसमे तत्व के सभी गुण मौजूद होते हैं परन्तु वह हमारी कल्पना से भी ज्यादा सूक्ष्म होने के कारण स्वतंत्र नहीं रह सकता है करोड़ों परमाणु एक के ऊपर एक बैठ कर तत्व की एक परत का निर्माण करते हैं
           किसी पदार्थ के विभाज्यता के मत के बारे में भारत मे बहुत पहले लगभग 500 ईसा पूर्व ही विचार प्रस्तुत कर दिया गया था सबसे पहलेेेे भारतीय दार्शनिक महर्षि कणाद ने यह जानकारी दी कि यदि हम द्रव्य अर्थात पदार्थ को विभाजित करतेे जाएं तो हमें छोटे छोटे कण प्राप्त होते जाएंगे तथा अंत में एक स्थिति ऐसी आएगी जब विभाजन की सीमा समाप्त हो जाएगी तब प्राप्त कण को पुनः विभाजित नहीं किया जा सकेगा अर्थात वह सूक्ष्मतम कण अविभाज्य रहेगा इसी कण को उन्होंने परमाणु की संज्ञा दी थी

      एक अन्य भारतीय दार्शनिक पकुुुधा
कात्यायम ने इस मत को बृहद रूप से समझाया तथा यह स्पष्ट किया की ये कण सामान्यतः संयुक्त रूप में पाए जातेे हैं जो हमें द्रव्यों के भिन्न-भिन्न रूपों को प्रदान करते हैं
      लगभग इसी समय काल में ग्रीक दार्शनिक डेमोक्रिटस एवं लीयूसिपस ने यह सुझाव दिया था कि यदि हम पदार्थ को विभाजित करतेे जाएं तो एक ऐसी स्थिति आएगी जब प्राप्त कण को विभाजित नहींं किया जा सकेगा उन्होंने इस अविभाज्य कण को परमाणु नाम दिया यह सभी सुझाव दार्शनिक विचारों पर आधारित थे अर्थात तब तक इनकी वैज्ञानिक प्रमाणिकता नहीं सिद्ध हो पाई थी
      19वीं शताब्दी तक आते-आते परमाणु के संबंध में काफी साक्ष्य एकत्रित हो गए थे सन  1808 में  जॉन डाल्टन नामक  एक ब्रिटिश  शिक्षक ने  पहली बार  वैज्ञानिक आधार पर  द्रव्य का परमाणु सिद्धांत दिया तथा सन 1898 में ब्रिटिश भौतिक विज्ञानी जे जे थॉमसन ने गैसों के विद्युत विसर्जन द्वारा यह ज्ञात किया था कि विभिन्न तत्वों के परमाणु में उपस्थित ऋणात्मक आवेश वाला घटक अर्थात इलेक्ट्रान सभी परमाणु के लिए पूर्णतया समान है
     सर जे जे थॉमसन ने परमाणु का पहला मॉडल भी प्रस्तावित किया थॉमसन के परमाणु मॉडल मे परमाणु एक समान धनात्मक आवेश से आवेशित गोला होता है जिसमें धनावेश समान रूप से वितरित रहता है थॉमसन ने यह कल्पना किया कि परमाणु एक तरबूज की तरह है जिसमें इलेक्ट्रॉन बीज की तरह उपस्थित है इस परमाणु मॉडल में परमाणु का द्रव्यमान पूरे परमाणु पर समान रूप से बटा हुआ माना गया था परंतु यह परमाणु मॉडल अपनी बड़ी कमियों के कारण भविष्य के प्रयोगों के परिणामों के संगत नहीं बैठा

       इसके बाद रदरफोर्ड ने अपने प्रकीर्णन प्रयोग द्वारा परमाणु की संरचना के बारे में कुछ निष्कर्ष निकाले जिसके अनुसार उनका परमाणु माडल इस प्रकार हैं:-

    परमाणु के अंदर अधिकांश स्थान रिक्त होता है तथा संपूर्ण धन आवेश परमाणु के अंदर समान रूप से बटा हुआ ना होकर बहुत कम आयतन में सकेंद्रित है जिसे रदरफोर्ड ने नाभिक कहा तथा एक निष्कर्ष यह निकला कि इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर वृत्ताकार पथ मे विभिन्न कक्षाओं में बहुत तेजी से घूमते हैं अतः रदरफोर्ड का मॉडल सौरमंडल से मिलता जुलता है  जिसमें सूर्य नाभिक के समान होता है और ग्रह गतिमान इलेक्ट्रॉन के समान होते हैं इलेक्ट्रॉन और नाभिक आपस में विद्युत आकर्षण बल के द्वारा बंधे रहते हैं तथा इलेक्ट्रॉन पर आवेश प्रोटॉन पर आवेश के बराबर लेकिन विपरीत चिन्ह का होता है इसका मतलब यह हुआ कि नाभिक में उपस्थित प्रोटॉनों की संख्या विभिन्न कक्षाओं में चक्कर लगा रहे इलेक्ट्रॉनों की संख्या के बराबर होती है

   परंतु विद्युत चुंबकीय सिद्धांत के अनुसार वर्णन करने पर यह परमाणु माडल परमाणु के स्थायित्व की व्याख्या नहीं कर सकने के कारण तथा परमाणु की इलेक्ट्रॉनिक संरचना के बारे में कुछ भी वर्णन नहीं करने के कारण यह सिद्धांत फेल हो जाता है
       रदरफोर्ड के परमाणु मांडल में थोड़ा सुधार करके नील्स बोर ने अपना परमाणु मॉडल प्रस्तुत किया,  इस मॉडल के अनुसार परमाणु के केंद्रीय भाग में छोटा धनात्मक आवेश वाला नाभिक होता है तथा उसके चारों और वृत्ताकार कक्षा में इलेक्ट्रॉन चक्कर लगाते हैं इस मॉडल के अनुसार इलेक्ट्रॉनों की विृत्तीय गति के लिए जरूरी अभिकेंद्रीय बल धनावेशित कण प्रोटॉनों एवं ऋणावेशित कण इलेक्ट्रॉनों के बीच के आकर्षण बल से मिलता है इस प्रकार बोर द्वारा प्रस्तुत मॉडल कुछ कमियों (जैसे बोर मॉडल को सभी परमाणु पर लागू नहीं किया जा सकता अतः परमाणु संरचना के बारे में ऐसे विचारों की आवश्यकता थी जिनमें  द्रव के तरंग कंण वाले दोहरे व्यवहार को ध्यान में रखा गया हो) के साथ काफी हद तक कामयाब रहा
     अब कुछ क्वांटम यांत्रिकी माडल के बारे में अति संक्षिप्त जानकारी सरलता के साथ प्रस्तुत करने की कोशिश करता हूं-
        क्वांटम यांत्रिकी एक सैद्धांतिक विज्ञान है जिसमें उन अति सूक्ष्म वस्तुओं की गतियों का अध्ययन किया जाता है जो तरंग और कण दोनों के गुण दर्शाती हैं परमाणु का क्वांटम यांत्रिकी मॉडल:-
      परमाणु के क्वांटम यांत्रिकी मॉडल के अनुसार बहु इलेक्ट्रॉन परमाणुओं के इलेक्ट्रॉन वितरण को कई कोशों में बांटा गया है यह कोश एक या अधिक उपकोशों केे बने हुए हो सकते हैं तथा इन उपकोषा में एक या अधिक कक्षक हो सकते हैं जिनमें इलेक्ट्रॉन उपस्थित होता है किसी परमाणु में ऐसे कई कक्षक संभव होते हैं तथा उनमें उर्जा के बढ़ते क्रम में इलेक्ट्रॉन पाउली के अपवर्जन सिद्धांत (किसी परमाणु में किन्ही दो इलेक्ट्रॉनों की चारो क्वांटम संख्याओं का मान समान नहीं हो सकता है)  और हुंड के अधिकतम बहुकता नियम (एक उपकोष के कक्षाओं में इलेक्ट्रॉनों का युग्मन तब तक प्रारंभ नहीं होता जब तक प्रत्येक कक्षक मेंं एक एक इलेक्ट्रॉन न आ जाए) के आधार पर भरे जाते हैं परमाणुओंं की इलेक्ट्रॉनिक संरचना इन्हीं विचारों पर आधारित है
Electron एक ⛔ आवेशित कण है जिसमे 1.6❌10^-19 कूलाम आवेश होता है जब की Protan एक ➕ आवेशित कण है जिसमे इलेक्ट्रान के बराबर ही 1.6❌10^-19 कूलाम आवेश होता है

उम्मीद करता हूँ यह जानकारी आप को पसंद आई होगी आप अपने प्रश्न सुझाव हमे कमेंट कर सकते हैं 
धन्यवाद!

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