Magnet and magnetism.

चुम्बक और चुम्बकत्व


नमस्कार दोस्तों आप सभी ने कभी ना कभी चुम्बक से जरूर खेला होगा, जी हाँ वही चुम्बक जो आज हम सब के जीवन का अहम हिस्सा बन चुका है फिर चाहे आप अपने हांथ मे लिए हुए मोबाइल, दीवार मे टँगे टीवी, बच्चों के खिलौनों, विभिन्न चिकित्सा उपकरणों आदि का उदाहरण लें या फिर पटरियों मे सरपट दौड़ रही ट्रेनों का इन सब मे इस जादुई चीज का भरपूर योगदान रहता है बिद्युत और चुम्बक के बिना इस आधुनिकता की कल्पना करना भी व्यर्थ है।


चुम्बक का इतिहास:-


                    यदि चुम्बक के इतिहास की बात करें तो चुम्बक के सामान्य गुण उसका व्यवहार मानव को प्राचीन काल से ज्ञात है इसका कारण शायद यह है कि हमारी पृथ्वी के लगभग 5 अरब वर्ष पुरानेेेे इतिहास में मानव सभ्यता के पहले से ही यह चुम्बक का गुण धारण किए हुए है सबसे पहले लगभग 600 ईसा पूर्व यूनान के मैग्नीशिया द्वीप में वहां के भेड़ चरवाहों को यह शिकायत हुई कि उनके जूते जो प्रायः लकड़ी के बने हुए होते थे उन में लोहे की कीलें लगी हुई थीं जो कई बार खास प्रकार के पत्थर से चिपक जाती थी तथा लोहे की टोपी चढ़ी हुई उनकी लाठी भी इसी प्रकार चिपक जाती जिससे उनका चलना फिरना कठिन रहता था इस घटना के कारण इस जादुई चीज का नाम मैग्नीशिया द्वीप के नाम पर मैग्नेट अर्थात हिंदी में चुम्बक रखा गया। शायद आपको पता हो यदि किसी एक चुम्बक को जो की अबाध रूप से स्वतंत्र लटका दिया गया हो वह हमेशा उत्तर दक्षिण दिसा मे ही ठहरता है, चुम्बक के इस खास गुण की खोज चीन में लगभग 400 ईसा पूर्व हो गई थी चीनी लोग चुम्बकीय सुई का उपयोग गोबी रेगिस्तान को पार करते समय दिशा ज्ञान के लिए करते थे तथा समुद्र यात्री भी दिशा ज्ञान के लिए चुम्बक का अनुसरण किया करते थे चीन की एक 4000 वर्ष पुरानी कथा के अनुसार सम्राट ह्वेंग-ती की सेना भीषण घने कोहरे में दुश्मन से विजई हुई थी क्योंकि उनके रथ में एक ऐसा यंत्र युक्त पुतला लगा था जिसका बांया हाथ हमेशा दक्षिण दिशा की ओर संकेत करता था। प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी अल्बर्ट आइंस्टीन के प्रारंभिक बचपन की स्मृति में उन्होंने जिक्र किया था कि जब उनके एक निकट संबंधी ने उन्हें एक चुम्बक भेंट किया था तब आइंस्टीन उससे चकित हो गए थे और उससे खेलते हुए उन्हें थकान नहीं महसूस होती थी क्योंकि वह इस चमत्कार को समझना चाहते थे कि कैसे एक चुम्बक उन लोहे की किलों और पिनों को अपनी ओर खींच लेता है जो उनसे दूर रखी हुई हैं।

चुम्बक के गुुँण:-


                   आकर्षण या प्रतिकर्षण किसी चुम्बक का स्वाभाविक गुण होता है तथा चुम्बक में दो ध्रुव होते हैं जिन्हें क्रमशः उत्तरी ध्रुव तथा दक्षिणी ध्रुव कहते हैं जिन्हें आप चाह कर भी अलग नहीं कर सकते अगर आप किसी चुम्बक को बीच से तोड़ दे तो दोनों टुकड़े स्वतंत्र द्विध्रुवीय चुम्बक बन जाते हैं ध्यातव्य है कि चुम्बक के समान ध्रुव एक दूसरे को प्रतिकर्षित करते हैं तथा असमान ध्रुव एक दूसरे को आकर्षित करते हैं अगर आप किसी चुम्बक के ध्रुव को पहचानना चाहते हैं तो उसे स्वतंत्रता पूर्वक लटका दीजिए अब आप पृथ्वी के उत्तरी एवं दक्षिणी ध्रुव की ओर ठहरे हुए सिरों को क्रमसः उत्तरी ध्रुव एवं दक्षिणी ध्रुव कह सकते हैं। किसी चुम्बक का उसकी शक्ति के अनुसार अपना चुम्बकीय क्षेत्र होता है तथा चुम्बक मे आकर्षण या प्रतिकर्षण बल की तीब्रता के लिए चुम्बकीय क्षेत्र की तीब्रता अनिवार्य है।

चुम्बकीय बल रेखाएं:-



                चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएं या चुम्बकीय बल रेखाएं वह रेखाएं हैं जो चुम्बक के उत्तरी ध्रुव से निकलकर दक्षिणी ध्रुव में समाप्त हो जाती हैं तथा चुम्बक मे आकर्षण या प्रतिकर्षण के लिए जिम्मेदार होती हैं हालांकि यह काल्पनिक बल रेखाएं हैं फिर भी अगर आप इन्हें देखना चाहें तो एक छोटे प्रयोग के माध्यम से देख सकते हैं इस प्रयोग में आपको एक दंड चुम्बक लेना है तथा एक कागज वा कुछ लोहेे का चूर्ण जिसे आप लोहे को घिस कर प्राप्त कर सकते हैं सबसे पहले एक दंड चुम्बक को समतल जगह पर रख लीजिए अब उसके बाद चुम्बक के ऊपर कागज़ रख लीजिए अब चुटकी की सहायता से लोहे का चूर्ण कागज के ऊपर फैला दीजिए अब आप देख पा रहे होंगे कि लोहेे का चूर्ण रेखाओं की आकृति संजो लेता है जो चुम्बकीय बल रेखाओं को प्रदर्शित करता है।


अब आपके मन में यह प्रश्नन उठ रहा होगा कि आखिर स्वतंत्रता पूर्वक लटक रहा चुम्बक हमेशा उत्तर दक्षिण दिशा में ही क्यों ठहरता है आपके इस प्रश्न का एक ही जवाब है कि हमारी पृथ्वी भी एक चुम्बक है जिसका चुम्बकीय क्षेत्र चुम्बक को हमेशा उत्तर दक्षिण दिशा में  ठहरने के लिए मजबूर करता है हमारी पृथ्वी चुम्बक की तरह व्यवहार क्यों करती है यह अभी शोध का विषय है इस पर विभिन्न भूगर्भ शास्त्रियों का भिन्न-भिन्न मत है चूंंकी हमारी इस पोस्ट का विषय चुम्बक है अतः इस विषय पर चर्चा किसी अगली पोस्ट में करेंगे।

चुम्बक की शक्ति:-


                      अब अगर बात चुम्बक के ताकत की की जाए तो एक ओर आपके ईयर फोन के स्पीकर में लगा कम शक्तिशाली छोटा सा चुम्बक है तो वहींं भारी भारी लोहे के सामानों को उठाने के लिए क्रेन मे लगा महा शक्तिशाली चुम्बक है दरअसल चुम्बक दो प्रकार के बनाए जाते हैं एक स्थाई चुम्बक एक अस्थाई चुम्बक अस्थाई चुम्बक विद्युत संचालित चुम्बक होते हैं जो महाशक्तिशाली बनाए जा सकते हैं तथा स्थाई चुम्बक कम शक्तिशाली होते हैं नीचे चित्र मे आप देख सकते हैं की किस प्रकार क्रेन मे लगा बिद्युत चुम्बक भारी-भारी लोहे की पाइपों के गट्ठर ट्रक मे लोड कर रहा है।

चुम्बक का उपयोग:-


             बिद्युत चुम्बक का उपयोग प्रायः ट्रेनों में ब्रेक लगाने के लिए (बिद्युत ब्रेक) तथा क्रेन में सामान उठाने आदि जैसे कामों के लिए किया जाता है वही अगर विद्युत चुम्बक के कुछ अन्य उपयोगों की बात की जाए तो इसका उपयोग सीटी स्कैन मशीन में भी किया जाता है तथा आपके घर में चल रहा पंखा या कोई भी विद्युत मोटर वा बिद्युत जनरेटर विद्युत चुम्बक का ही परिणाम है चुम्बक के अन्य उपयोगों में आपके कंप्यूटर में लगी हार्ड डिस्क ड्राइव, एटीएम या क्रेडिट कार्ड 💳  में लगी मैग्नेटिक लेयर, टेप रिकॉर्डर मे लगा मैग्नेटिक फीता या कोई भी स्पीकर, टीवी, रेडियो आदि चुम्बक के मुरीद हैं।

 

एक तथ्य:-


          यदि किसी चम्बक को गर्म किया जाए या उसे गिराया जाए पीटा जाए तो वह अपना चुम्बकत्व खो देता है वहीं अगर आप किसी साधारण लोहे की छड़ को चुम्बक बनाना चाहते हैं तो उसे उत्तर दक्षिण ध्रुवीय दिशा में रखकर या किसी बड़े चुम्बक के पास रख कर हथौड़े से वार करें तो वह चुम्बक के गुण प्रदर्शित करने लगती है।

      उम्मीद करता हूं यह जानकारी आपको अच्छी लगी होगी यदि हां तो पोस्ट को शेयर कर सकते हैं वा आप अपने सुझाव हमें कमेंट कर सकते हैं
धन्यवाद!

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