Electric Vehicle

विद्युत् वाहन (EV)


यूं तो मोटर वाहनों की शुरुआत 19वीं शताब्दी से हो चुकी थी परंतु बीसवीं शताब्दी से इसमें क्रांति आ गई और वाहनों की संख्या बढ़ने के साथ ही प्रदूषण की समस्या ने लोगों का ध्यान आकर्षित किया। आज 2022 में किसी भी सड़क में इंसानों से ज्यादा वाहन देखने को मिलते हैं। यही कारण है कि दिल्ली सरकार ने सम विषम जैसी व्यवस्था भी लागू की थी परंतु प्रदूषण की असल समस्या गाड़ियों का चलना नहीं है वल्कि गाड़ी चलने के लिए आवश्यक ईधन के दहन से उत्पन्न गैसे हैं। इसी समस्या के निराकरण के लिए विद्युत वाहनों का आविष्कार किया गया। हाल ही में यह महसूस किया गया है कि ऑटोमोबाइल क्षेत्र से जुड़े पेशेवरों तथा जन सामान्य के बीच इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने को लेकर एक प्रकार की सहमति बन रही है जो वर्ष 2070 तक भारत के शुद्ध शून्य उत्सर्जन (net zero emission) प्राप्ति की दिशा में सकारात्मक संकेत भी है। अतः आइए इस से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण परीक्षा उपयोगी बिंदुओं को समझ लेते हैं।



विद्युत वाहन किसे कहते हैं?

         विद्युत वाहन या इलेक्ट्रिक व्हीकल वे वाहन हैं जो चलने के लिए पारंपरिक वाहनों की तरह जीवाश्म ईंधन का उपयोग ना करके अपनी उर्जा रिचार्जेबल बैटरी से प्राप्त करते हैं। इन्हें सामान्यतः "इलेक्ट्रिक कार", "इलेक्ट्रिक रिक्शा" जैसे नाम से जाना जाता है। इनकी खास बात यह है कि इन में प्रयुक्त बैटरी रिचार्जेबल होती है अतः इन्हें पुनः विद्युत ऊर्जा स्रोत से चार्ज किया जा सकता है और इनका प्रदूषण उत्सर्जन शून्य होता है। प्रथम दृष्टया यह प्रतीत होता है कि इनका प्रदूषण उत्सर्जन शून्य है परंतु यदि इसे चार्ज करने के लिए उस बिजली को उपयोग में लाया जाता है जो कोयला के दहन से बन रही होती है तब इसे शून्य प्रदूषण कहना बेमानी होगा। हां यदि इसे चार्ज करने के लिए प्रयुक्त बिजली सोलर पैनल से प्राप्त की जाए तब यह पूर्ण रूप से क्लीन एंड ग्रीन होगा।

इलेक्ट्रिक वाहनों को मुख्य रूप से तीन भागों में विभाजित किया जाता है जो कि इस प्रकार हैं।
  1. बैटरी इलेक्ट्रिक वाहन (BEV)
  2. हाइब्रिड इलेक्ट्रिक वाहन (HEV)
  3. प्लग इन हाइब्रिड इलेक्ट्रिक वाहन (PHEV)

बैटरी इलेक्ट्रिक वाहन(BEH): इलेक्ट्रिक वाहनों की इस कैटेगरी में आने वाले समस्त वाहन ऊर्जा के स्रोत के रूप में पूर्ण रूप से रिचार्जेबल बैटरी पर निर्भर होते हैं। तथा इनमें सिर्फ एक बैटरी लगी होती है जिसे चार्ज करके इंजन के मोटर को ऊर्जा दी जाती है। ये पूर्ण रूप से रिचार्जेबल बैटरी  जनित विद्युत ऊर्जा से चलते हैं। भारत देस इलेक्ट्रिक वाहनों के मामले में अभी शुरुआती दौर पर है अतः वर्तमान में यहां इलेक्ट्रिक वाहनों की श्रेणी में केवल BEV को ही शामिल किया जाता है।

हाइब्रिड इलेक्ट्रिक वाहन (HEV): इस प्रकार के वाहन वास्तव में परंपरागत वाहन ही होते हैं जो जीवाश्म ईंधन का प्रयोग करके ऊर्जा प्राप्त करते हैं परंतु इनमें आंतरिक दहन इंजन के अलावा विद्युत प्रणोदन प्रणाली (electric propulsion system) का उपयोग किया जाता है। आसान भाषा में कहें तो इस प्रकार के वाहन जब आंतरिक दहन इंजन से जीवाश्म ईंधन का उपयोग करते हुए चल रहे होते हैं उस समय इंजन की अतिरिक्त ऊर्जा के उपयोग से एक डायनेमो प्रयुक्त कर कार में रखी हुई बैटरी को चार्ज कर लिया जाता है। अब यदि कार में जीवाश्म ईंधन यानी कि पेट्रोल और डीजल ना भी हो तब भी उस बैटरी के सहायता से इंजन से जुड़ा विद्युत मोटर घुमा कर के कार को चलाया जाता है।

प्लग इन हाइब्रिड इलेक्ट्रिक वाहन (PHEV): हाइब्रिड इलेक्ट्रिक वाहन की तरह यह वाहन भी ऊर्जा के स्रोत के रूप में आंतरिक दहन इंजन और रिचार्जेबल बैटरी का प्रयोग करते हैं परंतु यह बैटरी को चार्ज करने के लिए इंजन की ऊर्जा का उपयोग नहीं करते हैं बल्कि बैटरी को चार्ज करने के लिए किसी बाहरी स्रोत पर निर्भर होते हैं।


भारत में इलेक्ट्रिक व्हीकल को लेकर चुनौतियां

देश में इलेक्ट्रिक व्हीकल के समक्ष प्रमुख चुनौतियों को निम्नलिखित बिंदुओं में देखा जा सकता है।

प्रति मील ऊर्जा व्यय का अधिक होना (Low Mileage): एक तो स्लो चार्जर का उपयोग करके वाहन को घर पर फुल चार्ज करने में 12 घंटे तक का समय लग जाता है। ऊपर से माइलेज भी कम मिलता है अतः इलेक्ट्रिक व्हीकल से लंबी दूरी की यात्रा करना एक कठिन कार्य है। देश में ऐसी इलेक्ट्रिक गाड़ियां बनाई जानी चाहिए जो कम बैटरी खर्च कर ज्यादा चलें।

टॉप स्पीड का कम होना: इलेक्ट्रिक वाहनों की चाल और दक्षता काफी कम होती है हालांकि कुछ इलेक्ट्रिक वाहनों की टॉप स्पीड 50 किलोमीटर प्रति घंटा तक होती है परंतु आंतरिक दहन इंजन प्रणाली की अपेक्षा यह बहुत कम है।

अधिक कीमत (Expensive): विद्युत वाहनों की कीमत पेट्रोल या डीजल से चलने वाले वाहनों की अपेक्षा अधिक होती है। ऐसे में यह बात ग्राहकों को हतोत्साहित करती है। अतः सरकार को व्हीकल कंपनियों के साथ मिलकर सस्ते इलेक्ट्रिक वाहन बनाने पर जोर देना होगा ताकि लोगों को प्रोत्साहित किया जा सके।

प्रौद्योगिकी की कमी: भारत में इलेक्ट्रिक व्हीकल से संबंधित प्रौद्योगिकी अत्यधिक पिछड़ी अवस्था में है। देश में बैटरी सेमीकंडक्टर्स कंट्रोलर जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स के उत्पादन में पर्याप्त कमी है। इलेक्ट्रिक कार को चलाने के लिए लिथियम आयन बैटरी की आवश्यकता होती है परंतु भारत में बैटरियों के लिए एक विनिर्माण आधार अनुपस्थित है अतः ऐसे में हम पूर्णता आयात पर निर्भर हैं। सरकारी आंकड़े के अनुसार वर्ष 2021 में 1 बिलियन डालर से अधिक मूल्य के लिथियम आयन सेल का आयात किया गया था। यहां इलेक्ट्रिक वाहनों की सर्विसिंग लागत भी अधिक होती है क्योंकि सर्विसिंग के लिए कौशल की आवश्यकता होती है और भारत में ऐसे कौशल विकास के लिए उपयुक्त प्रशिक्षण पाठ्यक्रम का अभाव है।

बुनियादी अवसंरचना की अनुपस्थिति: इलेक्ट्रिक वाहनों के इस्तेमाल हेतु बुनियादी  अवसंरचना की आवश्यकता होती है जो फिलहाल भारत में अनुपस्थित है बुनियादी संरचना में सर्वप्रथम आवश्यक वस्तु चार्जिंग स्टेशन है जो लगभग नहीं के बराबर है वर्ष 2018 तक भारत में केवल 650 चार्जिंग स्टेशन ही उपलब्ध थे। इस प्रकार बुनियादी प्लेटफार्म की अनुपस्थिति ग्राहकों को डिमोटिवेट करती है क्योंकि ऐसे में लंबी दूरी की यात्रा करना अव्यावहारिक हो जाता है।

प्रोत्साहन के लिए सरकार के कदम

          वर्तमान में भारत वैश्विक अभियान EV30/30 का समर्थन करता है जिसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक नए वाहनों की बिक्री में इलेक्ट्रिक वाहनों की हिस्सेदारी को कम से कम 30% तक करना है। सरकार ने देश में विद्युत वाहनों के विकास और प्रोत्साहन के लिए कई उपाय किए हैं जैसे फेम II योजना (FAME II - Faster Adoption and Manufacturing of Hybrid and Electric Vehicles), उन्नत रसायन विज्ञान सेल (Advance Chemistry Cell) के लिए ऑटो और आटोमोटिव घटकों हेतु शुरू की गई उत्पादन लिंक्ड प्रोत्साहन ( PLI - Production Linked Incentive) योजना,

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