चेहरा पहचान प्रणाली
फेशियल रिकॉग्निशन तकनीक जिसे हिंदी में चेहरा पहचान प्रणाली के नाम से जाना जाता है, आज हम इस तकनीक की चर्चा इसलिए करने जा रहे हैं क्योंकि सरकार ने हवाई यात्रा को कागज रहित और संपर्क रहित बनाने के लिए अब हवाई अड्डों पर यात्रियों के बोर्डिंग पास के लिए फेस स्कैन का उपयोग करने जा रही है। इसके लिए भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण द्वारा डिजीयात्रा नीति (DigiYatra Policy) के हिस्से के रूप में इस प्रौद्योगिकी को लागू करने का दायित्व NEC (कारपोरेशन प्राइवेट लिमिटेड) को सौंपा गया है। तो आइए इस प्रौद्योगिकी के बारे मैं परीक्षा की दृष्टि से कुछ जरूरी बातें जानते हैं।
फेस रिकॉग्निशन क्या है?
फेसियल रिकॉग्निशन तकनीक (FRT) एक ऐसी बायोमेट्रिक तकनीक है जिसमें एक कंप्यूटर द्वारा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की सहायता से किसी व्यक्ति के चेहरे की पहचान की जाती है। इस तकनीक में व्यक्ति की पहचान करने हेतु उस व्यक्ति के चेहरे की लाखों भिन्न-भिन्न विशेषताओं का उपयोग किया जाता है जैसे चेहरे का पैटर्न, आंखें, भौंहें, होंठ, चेहरे के विभिन्न निशान और भी बहुत कुछ जो मानव की इंद्री नोटिस नहीं कर सकती वह बारीक से बारीक विशेषता आदि। वर्तमान समय में ऑटोमेटेड फेसियल रिकॉग्निशन सिस्टम (AFRS) व्यक्तियों के चेहरों की छवियों या वीडियो के व्यापक डेटाबेस के आधार पर कार्य करता है। इसमें कंप्यूटर में पहले से मौजूद चेहरे के डेटाबेस से तत्काल सीसीटीवी द्वारा उपलब्ध छवियों से मिलान करके आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के द्वारा व्यक्ति की पहचान की जाती है।
फेस रिकॉग्निशन कैसे काम करता है?
- प्रथम चरण फेस रिकॉग्निशन सिस्टम को कार्यान्वित करने के लिए सर्वप्रथम कंप्यूटर को कैमरे द्वारा कैप्चर करके किसी व्यक्ति के चेहरे की तस्वीर को दिया जाता है। तत्पश्चात कंप्यूटर द्वारा उस व्यक्ति के चेहरे के पैटर्न और उसकी लाखों विशेषताओं को पहचान कर एक डेटा तैयार किया जाता है तथा समस्त डाटा डिजिटल फॉर्म में डेटाबेस में संगृहीत किया जाता है। इस प्रक्रिया को संपन्न करने के लिए विभिन्न प्रकार के सॉफ्टवेयर और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग किया जाता है।
- द्वितीय चरण डेटाबेस में संग्रहित चेहरे का डाट एक खास प्रकार के सॉफ्टवेयर के साथ जोड़ा जाता है जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का प्रयोग करता हो, इस प्रकार आवश्यकता पड़ने पर किसी भी व्यक्ति के चेहरे का मिलान डेटाबेस में पहले से मौजूद डाटा से करा लिया जाता है जिससे उस व्यक्ति की पहचान हो जाती है।
आइए इसे एक उदाहरण से समझते हैं। आपको पता होगा कि आधार कार्ड बनवाते समय आपके चेहरे, आंखों और उंगलियों का डाटा लिया गया था अब मान लेते हैं कि सरकार ने आपके शहर के सारे सीसीटीवी कैमरों का लिंक एक ऐसे कृत्रिम बुद्धिमत्ता (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) युक्त कंप्यूटर से किया है जो फेस रिकॉग्निशन तकनीको उपयोग करने वाले सॉफ्टवेयर से लैस है तथा अपने मेमोरी में आपके आधार कार्ड का डेटाबेस रखता है। ऐसे में अब आप यदि किसी कैमरे के सामने कोई गैर कानूनी कृत्य को अंजाम देते हैं तो आपकी पहचान करने के लिए कोई मशक्कत करने की जरूरत नहीं है फेस रिकॉग्निशन तकनीक आपका नाम एड्रेस एक क्षण में उपलब्ध करा देगी।
फेस रिकॉग्निशन के उपयोग और लाभ-
- इस तकनीक का उपयोग मुख्य रूप से अपराधियों की पहचान और सत्यापन परिणामों में सुधार करने के लिए किया जा सकता है जिससे पुलिस विभाग की अपराध जांच क्षमताओं में वृद्धि होगी।
- अत्यधिक भीड़भाड़ वाले क्षेत्र में किसी खास व्यक्ति को चिन्हित करने में किया जा सकता है। उदाहरण के लिए किसी टेररिस्ट का मंसूबा विफल करने में इसका उपयोग सहायक सिद्ध होगा।
- इस तकनीक का उपयोग किसी भी प्रकार के सुरक्षा सत्यापन के लिए किया जा सकता है उदाहरण स्वरूप आपके मोबाइल को अनलॉक करने के लिए फेस अनलॉक फीचर उपलब्ध है।
- इस तकनीक के उपयोग द्वारा कोई कंपनी अपने सभी कर्मचारियों की उपस्थिति और अनुपस्थिति का पता लगाने के लिए ई हाजिरी स्वचालित तरीके से ले सकती है।
- इस तकनीक का उपयोग करके अधिकृत व्यक्तियों को गेट पास या हवाई अड्डों पर बोर्डिंग पास दिया जा सकता है। रेलवे इस तकनीक का उपयोग करके बिना टिकट यात्रा पर रोक लगा सकती है।
- जरूरत पड़ने पर भारत सरकार द्वारा इस तकनीक का प्रयोग कर के देश के नागरिकों के सत्यापन का कार्य किया जा सकता है।
- वर्तमान में कोविड महामारी को देखते हुए यह प्रणाली अधिक प्रासंगिक हो जाती है क्योंकि यह पूरी तरह संपर्क रहित प्रक्रिया का पालन करती है। अतः इसे व्यापक रूप से अपनाया जाना चाहिए।
फेस रिकॉग्निशन तकनीक की चुनौतियां-
इस तकनीक की अवसंरचनात्मक लागत को भी एक चुनौती की तरह देखा जा सकता है वहीं दूसरी ओर निजता का उल्लंघन एक प्रमुख चुनौती हो सकती है क्योंकि वर्तमान डिजिटल युग में डाटा एक बहुत ही कीमती संसाधन हो गया है जिसे स्वतंत्र नहीं छोड़ा जा सकता क्योंकि डाटा के दुरुपयोग की संभावना पाई जाती है। इस संदर्भ में राष्ट्र को एक मजबूत डेटा संरक्षण नीति की व्यवस्था करनी चाहिए ताकि नागरिकों की निजता का सम्मान भी हो सके। चूंकि यह तकनीक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर आधारित है अतः किसी मशीनी त्रुटि की संभावना स्वाभाविक है जिससे इस तकनीक की विश्वसनीयता और प्रमाणिकता पर भी सवाल उठता है। हालांकि कंप्यूटर विज्ञान के क्षेत्र में प्रगति लगातार जारी है अतः आने वाले समय में यह तकनीक एक विश्वसनीय तकनीक के रूप में उभरेगी।
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