डायमंड बैटरी

आपके फोन में लगी लिथियम आयन या लिथियम पॉलिमर बैटरी कितना चलती है 1 दिन, 2 दिन या 1 हफ्ता? कितना अच्छा हो यदि हमें बैटरी को चार्ज न करना पड़े! जी हां, डायमंड बैटरी इस समस्या का समाधान हो सकती है। क्योंकि ये सालों नहीं बल्कि हज़ारों वर्षों तक चलती है — पूरे 28,000 साल। यानी सोचिए, एक बैटरी को आपकी कितनी पीढ़ियाँ उपयोग करेंगी। हालांकि डायमंड बैटरी अभी बाजार में उपलब्ध नहीं है, परंतु यह भविष्य की ऊर्जा तकनीक के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी संभावना मानी जा रही है। जब यह तकनीक पूरी तरह परिपक्व हो जाएगी, तब यह विशेषकर उन क्षेत्रों में उपयोगी सिद्ध होगी जहाँ लंबी अवधि, सूक्ष्म ऊर्जा, और बैटरी बदलने की असंभवता हो — जैसे अंतरिक्ष मिशन, गहरे समुद्री सेंसर, और चिकित्सा उपकरण। यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिस्टल (UK) के वैज्ञानिकों ने 2016 में पहली बार यह अवधारणा प्रस्तुत की थी। स्टार्टअप कंपनी Arkenlight इस तकनीक को व्यावसायिक रूप से विकसित कर रही है। दिसंबर 2024 में ब्रिटेन की सरकारी एजेंसी UKAEA ने कार्बन-14 आधारित डायमंड बैटरी का सफल निर्माण प्रदर्शित किया था।
संरचना और कार्यप्रणाली
डायमंड बैटरी की संरचना अत्यंत सरल किन्तु वैज्ञानिक दृष्टि से परिष्कृत है। इसका मुख्य भाग रेडियोधर्मी समस्थानिक कार्बन‑14 से निर्मित होता है, जो प्रायः परमाणु रिएक्टरों में प्रयुक्त ग्रेफाइट मॉडरेटर से प्राप्त किया जाता है। इस कार्बन‑14 को CVD (केमिकल वेपर डिपोजिशन) तकनीक द्वारा सिंथेटिक डायमंड में रूपांतरित किया जाता है। यह रेडियोधर्मी डायमंड परत बैटरी का ऊर्जा-स्रोत होती है। इसको एक अन्य पतली, गैर-रेडियोधर्मी सिंथेटिक डायमंड परत से ढका जाता है, जो बैटरी को पूरी तरह सुरक्षित बनाती है और किसी भी प्रकार के विकिरण को बाहर नहीं निकलने देती।
डायमंड बैटरी में प्रयुक्त प्रमुख कच्चा माल कार्बन‑14, वास्तव में परमाणु भट्टी का एक अवशिष्ट है। इसे तकनीकी रूप से "परमाणु कचरा" की श्रेणी में रखा जाता है। परमाणु रिएक्टरों, विशेष रूप से ग्रेफाइट-मॉडरेटेड रिएक्टरों में, न्यूट्रॉन की गति को नियंत्रित करने हेतु ग्रेफाइट ब्लॉक का उपयोग किया जाता है। जब ये ग्रेफाइट ब्लॉक उच्च ऊर्जा न्यूट्रॉन विकिरण के संपर्क में आते हैं, तो यह परमाणु प्रक्रिया होती है:
¹³₆C + ¹₀n → ¹⁴₆C
अर्थात्, कार्बन-13 में न्यूट्रॉन के अवशोषण से कार्बन-14 उत्पन्न होता है। यह रेडियोधर्मी होता है और बीटा विकिरण द्वारा धीरे-धीरे क्षय करता है।इस बैटरी की कार्यविधि बीटा क्षय पर आधारित है। कार्बन‑14 बीटा कण (इलेक्ट्रॉन) उत्सर्जित करता है जो डायमंड क्रिस्टल में गतिमान होते हैं। ये गतिशील इलेक्ट्रॉन इलेक्ट्रॉन–होल पेयर उत्पन्न करते हैं जिससे विद्युत धारा का सृजन होता है। यह प्रक्रिया धीमी किन्तु अत्यंत स्थिर होती है और हज़ारों वर्षों तक बिना रिचार्ज के ऊर्जा प्रदान कर सकती है। विकिरण पूरी तरह आंतरिक रूप से नियंत्रित होता है और बाहर कोई हानिकारक प्रभाव नहीं पहुंचाता।
इसकी सीमाएं
- ऊर्जा घनत्व बहुत कम है, जिससे यह केवल माइक्रो उपकरणों के लिए उपयुक्त है, बड़े ऊर्जा उपभोग वाले यंत्रों के लिए नहीं।
- निर्माण लागत अत्यधिक है क्योंकि सिंथेटिक डायमंड और कार्बन‑14 निष्कर्षण की प्रक्रिया अत्यंत महंगी है।
- यह बैटरी रेडियोधर्मी कचरे से बनी होती है, जिससे आम जनता में सुरक्षा को लेकर आशंकाएँ हैं।
- इसके उपयोग और वितरण पर कड़े परमाणु सुरक्षा नियम लागू होते हैं, जिससे व्यापक उपयोग बाधित होता है।
- बैटरी का विकिरण स्वतःस्फूर्त होता है जिसे नियंत्रित नहीं किया जा सकता, केवल उपयोग किया जा सकता है।
- यह केवल उन्हीं परिस्थितियों में उपयोगी है जहाँ बैटरी बदलना कठिन हो और शक्ति की आवश्यकता न्यूनतम हो।
- इस बैटरी का निष्कासन और निस्तारण विशेष सुरक्षा मानकों की माँग करता है।
- इस तकनीक के प्रति समाज और नीति निर्माताओं में अभी पर्याप्त जागरूकता और विश्वास नहीं है।
भविष्य और संभावनाएं
डायमंड बैटरी को लेकर भविष्य में अनेक संभावनाएँ दिखाई देती हैं, विशेषकर उन क्षेत्रों में जहाँ दीर्घकालिक, स्वायत्त और कम-शक्ति वाली ऊर्जा आवश्यक है। अंतरिक्ष अनुसंधान, समुद्र-गह्वर अन्वेषण, और चिकित्सा उपकरणों जैसे क्षेत्रों में यह बैटरी क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकती है। जहां पारंपरिक बैटरियाँ सीमित आयु के कारण बार-बार बदली जाती हैं, वहीं डायमंड बैटरी हज़ारों वर्षों तक कार्य कर सकती है। इसके उपयोग से पेसमेकर जैसे जीवनरक्षक उपकरणों में स्थायित्व आएगा और सैटेलाइट या डीप-स्पेस प्रोब्स को बिना ईंधन के दीर्घ समय तक ऊर्जा प्रदान की जा सकेगी। रक्षा क्षेत्र में यह तकनीक सीमाओं पर तैनात सेंसर और निगरानी उपकरणों के लिए उपयोगी हो सकती है। यदि निर्माण लागत घटती है और रेडियोधर्मी सामग्री की सुरक्षा को लेकर जनविश्वास बनता है, तो यह तकनीक उपभोक्ता उत्पादों तक भी पहुँच सकती है। यह परमाणु कचरे के पुनर्प्रयोग का उत्कृष्ट उदाहरण बन सकती है। यदि नीतिगत समर्थन, सार्वजनिक जागरूकता और तकनीकी नवाचार समन्वित रूप से आगे बढ़ें, तो डायमंड बैटरी स्वच्छ, सुरक्षित और स्थायी ऊर्जा का नया अध्याय लिख सकती है।