Theory of lightning conductor

तड़ित चालक का सिद्धांत


समय के साथ विज्ञान लगातार आगे बढ़ रहा है। और इसी क्रम मे विश्व भर में गगन चुम्बी इमारतों का बनना तथा उनकी सुरक्षा भी एक चुनौती रही है। जैसे जैसे ईमारते उंची होती जाती हैं वैसे वैसे उन पर बिजली गिरने का खतरा भी काफी बढ़ता चला जाता है। चिनाई, लकड़ी, कंक्रीट और स्टील आदि के अंदर अधिक वोल्टेज की धारा प्रवाहित होने से इमारत मे आग लगने का खतरा बना रहता है तथा आग नहीं लगने की स्थिति में भी इमारत के अन्दर मौजूद मनुष्यों तथा विभिन्न महगे उपकरण जैसे टीवी, कम्प्यूटर, मोबाइल और अन्य बिजली उपकरण आदि के ध्वस्त होने का खतरा रहता है। तब ऐसे में आकाशीय बिजली से बचने के लिए कुछ सुरक्षा उपाय करना आवश्यक हो जाता है जिसके लिए तड़ित चालक का प्रयोग किया जाता है।
           

तड़ित चालक का इतिहास वा खोज

        तड़ित चालक का क्या कार्य है? इस प्रश्न से आप सभी परिचित हैं और यह जानते हैं की यह व्यवस्था आकाशीय बिजली यानी की तड़ित से भवनों की सुरक्षा करती है। यादि तड़ित चालक के इतिहास की बात करें तो आप सब की जानकारी के लिए तड़ित चालक का सिद्वांत सबसे पहले अमेरिकी वैज्ञानिक बेंजामिन फ्रैंकलिन ने सन 1749 में दिया था। उसके बाद सन 1960 ई में इस प्रणाली मे और अधिक सुधार किया गया था।तब से विश्व भर में किसी भी बिल्डिंग में बिजली गिरने जैसी संभावना बनने पर तड़ित चालक इससे जन धन की रक्षा करते आ रहे हैं। इसके बाद प्रसिद्ध रूस के लीनिंग टॉवर मे तड़ित चालक का प्रयोग किया गया था जिसके लिए टॉवर के उपर एक भू संपर्कित धातु की छड़ लगाई गई थी। अकिनफी डेमिडोव के आदेश पर, 1721 और 1745 के बीच नेवीस्कॉन टॉवर का निर्माण कराया गया था जिसमे बेंजामिन फ्रैंकलिन के प्रयोग के बाद इसके उपर तड़ित चालक का उपयोग किया गया था। इसके अलावा यूरोपीय शहरों के चर्च टॉवर भी काफी ऊंचाई तक होते थे। इस वजह से उनपर बिजली गिरने की संभावना सबसे प्रबल होती थी अतः वहां शुरुआती दौर में प्रार्थना के द्वारा बिजली को गिरने से रोकने का प्रयास किया जाता था। लेकिन पीटर अलवर्ड्स ने 1745 ई में इस मामले पर सैद्धांतिक विचार किया तथा जून 1754 में आविश्कृत की गई एक मीथेरोलॉजिकल मशीन काफी उपयोगी सिद्ध हुई थी जब इसका प्रयोग चर्च पर बिजली गिरने से रोकने के लिए किया जाता था। अमेंरिका के अंदर बिजली को आकर्षित करने वाली छड़ को  फ्रैंकलिन रॉड  भी कहा जाता था क्योंकि इसका आविष्कार बेंजामिन फ्रैंकलिन ने 1749 में किया था। हालांकि फ्रैंकलिन इस मामले पर काफी पहले से सोच चुके थे। क्योंकी उन्हो ने अपने पतंग प्रयोग के माध्यम से इन सब चीजों के बारे मे विस्तार से जानकारी प्राप्त कर ली थी।
       
19वीं शताब्दी मे आने के बाद बिजली की रॉड के उपर एक कांच की गेंद का प्रयोग किया जाने लगा था। ऐसा करना काफी सजावटी हो गया था तथा कांच की गेंद का प्रयोग इसलिए भी किया जाता था क्योंकि यदि बिजली गिरती तो यह कांच की गेंद टूटी हुई मिलती जो बिजली गिरने का एक सबूत भी होती थी। जिससे यदि कांच की गेंद टूट जाती तो सुरक्षा के लिहाज से भवन मालिक को भवन और ग्राउंड वायर की अच्छी तरीके से जांच करनी होती थी। इसके अलावा जल जहाजों पर भी इस प्रकार के तड़ित चालक का प्रयोग किया जाता था ताकि बिजली गिरने से होने वाले नुकसान को कम किया जा सके 1820 में विलियम स्नो हैरिस ने लकड़ी के नावों के लिए भी बिजली से सुरक्षा के लिए एक सफल प्रणाली का आविष्कार किया था।

तड़ित चालक की संरचना

किसी मकान में तड़ित चालक को लगाने के लिए तड़ित चालक के अंदर एक लौह या अधिकतर मामलों में तांबे की एक रॉड का प्रयोग किया जाता है क्योंकि तांबे की रॉड विद्युत की अच्छी सुचालक होती है जिससे वह आवेश को अच्छी तरह अवशोषित कर लेती है इस व्यवस्था में रॉड को जमीन के अंदर गहराई मे नमक कोयला डाल के भू संपर्कित कर दिया जाता है। और रॉड के उपरी हिस्से को तीन चार शाखाओं में नुकीला बनाया जाता है जो मकान से कई फुट उंचाई पर लगाया जाता है।‌‌‌ यह काफी उंचा इसलिए लगा होता है ताकि काफी बेहतर तरीके से मकानों को बचाने मे सक्षम हो सके क्यों की ऊंचा होने से यह बिजली को ऊपर ही आकर्षित कर लेता है जिससे नीचे मकान को किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंच पाता है। तथा नुकीला इसलिए बनाया जाता है क्योंकि आवेश तेजी से आकर्षित हो सके। इस प्रकार तड़ित चालक भवनों को तड़ित के प्रभाव से बचाता है।

तड़ित चालक की कार्यप्रणाली

 जब किसी भी तड़ित चालक की रेंज के आस पास बिजली आती है तो नुकीली फ्रैंकलिन रॉड उसे तुरन्त नीचे खींच लेती है और आवेश/बिजली को एक सुचालक रास्ता मिल जाता है। क्योंकि तॉबे की रॉड का प्रतिरोध कम होने की वजह से वह तेजी से उसके अंदर चली जाती है और रॉड के भू संपर्कित होने के कारण भूमि मे समाप्त/निश्फल हो कर किसी प्रकार की हानि नहीं पहुंचा पाती है। अथवा जब एक तांबे की सुचालक रॉड एक ईमारत के पास खड़ी रहती है और तांबे की छड़ का निचला हिस्सा तांबे की भू संपर्कित ‌प्लेटों से जुड़ा रहता है। तब यदि भवन के उपर से ऋणात्मक आवेश वाला बादल गुजरता है तो आस पास के धनात्मक आवेश से आवेशित किए गए बिंदु आसपास के क्षेत्र में हवा को आयनित करेंगे। यह आंशिक रूप से बादल के निगेटिव चार्ज को बेअसर कर देगा, जिससे क्लाउड की बिद्युत क्षमता कम हो जाएगी। और निगेटिव चार्ज तेजी से धरती के अंदर बिना ईमारत को नुकसान पहुंचाए निश्फल हो जाएंगे। अब आपके मन मे यह सवाल आ रहा होगा कि बिजली तड़ित चालक के माध्यम से ही प्रवाहित क्यों होती है जबकि वह हवा के कणों और बारिश की बूंदों का प्रयोग करके भी जमीन पर गिर सकती है। लेकिन इसका उत्तर यह है कि कंडक्टर का प्रतिरोध बहुत कम होता है बजाय हवा के इसी वजह से बिजली तड़ित चालक या कंडक्टर के माध्यम से बहती है।

तड़ित चालक का चित्र


तड़ित चालक की रेंज कितनी होती है

 तड़ित चालक की भी एक रेंज होती है किसी मकान के उपर लगे तड़ित चालक की रेंज उसकी उंचाई पर निर्भर करती है। आम तौर पर यह 50 फिट तक सुरक्षा प्रदान करते हैं। यदि बिल्डिंग बड़ी है तो फिर दो या दो से अधिक तड़ित चालक का प्रयोग किया जा सकता है।

तड़ित चालक की सीमा

यदि आप तड़ित चालक का प्रयोग करते हैं तो इसका अर्थ यह नहीं है कि बिजली गिरने पर यह आपको 100 प्रतिशत सुरक्षा प्रदान करेगा क्यों की सामान्य धारणा यह है कि आकाशीय बिजली केवल छत के रास्ते ही मकान को नुकसान पहुंचाती है। जबकि वास्तविकता यह है की जब भी कहीं आकाशीय बिजली गिरती है तो उसका दायरा कम से कम डेढ़ से दो किलोमीटर तक का होता है। ऐसे मे कभी-कभी आकाशीय बिजली 'न्यूट्रल' के जरिए घर में प्रवेश कर जाती है जिससे बिजली के उपकरण खराब हो जाते हैं। ऐसे में इसे रोकने के लिए अब सर्ज अरेस्टर लगवाना आवश्यक हो जाता है।

तड़ित चालक आकाशीय बिजली को छत से रोकने में सक्षम है लेकिन जब बिजली न्यूट्रल को रास्ता बनाकर घर में प्रवेश करे तो उसके लिए सिर्फ सर्ज अरेस्टर ही कारगर होता है। यदि उन्नत किस्म का सर्ज अरेस्टर लगा है तो वह काफी हद तक आकाशीय बिजली के असर को रोकने में सक्षम होता है। यदि सर्ज अरेस्टर न लगवा पाएं तो आकाशीय बिजली गिरने पर घर के सभी विद्युत उपकरणों को अन प्लग कर दें। इससे भारी नुकसान होने से बचा जा सकता है। एक बात ध्यातव्य है कि हालांकि यंत्रों की आयु 50 वर्ष तक होती है फिर भी इसकी जांच समय समय पर होती रहनी चाहिए।

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