स्थिर विद्युत
हमने आसमान मे बादल को गर्जना करते सुना है तथा आसमानी गर्जना के साथ निकलने वाले प्रकाश को देखा है कभी-कभी इस आसमानी आफत से बड़े-बड़े बृक्षों को धराशायी होते हुए भी देखा है शायद मनुष्य सबसे पहले इसी घटना के द्वारा बिद्युत से परिचित हुआ होगा
हमारा यह दैनिक जीवन का अनुभव है कि दो वस्तुओं को परस्पर रगड़ने से उनमे कभी-कभी ऐसा गुण आ जाता है जिससे वे अपने आसपास रखी हल्की वस्तुओं को आकर्षित करने लगती है जैसे ठंडी के शुष्क मौसम मे पहनने वाले गरम कपड़ों से चिंगारी के साथ चट-चट की आवाज निकलना या कंघी करने के बाद कंघी मे आकर्षण शक्ति का आ जाना आदि
अर्थात् विद्युत वह ऊर्जा है जिसके कारण किसी पदार्थ में हल्की वस्तुओं को आकर्षित करने का गुण उत्पन्न हो जाता है दो वस्तुओं को आपस में रगड़ने से उत्पन्न विद्युत को घर्षण विद्युत कहते हैं इसे आप एक साधारण प्रयोग द्वारा देख सकते हैं यदि किसी शुष्क दिन एक प्लास्टिक के स्केल को सूखे बालों पर रगड़ कर मेजपर पड़े छोटे-छोटे कागज के टुकड़ों के पास लाए तो आप देखेंगे कि कागज के टुकड़े स्केल की ओर आकर्षित हो रहे हैं
इस घटना का अध्ययन सर्वप्रथम यूनान के वैज्ञानिक थेल्स ने ईसा से लगभग 600 वर्ष पूर्व किया था उन्होंने देखा कि जब अंबर की छड़ को फर या बिल्ली की खाल से रगड़ा जाता है तो वह कागज के छोटे-छोटे टुकड़ों को आकर्षित कर लेती है अंबर को यूनानी भाषा में इलेक्ट्रॉन कहते हैं अतः उपर्युक्त घटना के कारण को इलेक्ट्रिसिटी नाम दिया गया इसी इलेक्ट्रिसिटी शब्द का हिंदी रूपांतरण विद्युत है
वैज्ञानिक दृष्टि से इस घटना का विस्तृत अध्ययन सोलहवीं शताब्दी में इंग्लैंड के वैज्ञानिक विलियम गिल्बर्ट ने किया उन्होंने पाया कि अम्बर की भांति अन्य पदार्थ जैसे कांच एबोनाइट गंधक लाख आदि भी रगड़े जाने पर हल्की वस्तुओं को आकर्षित करने का गुण प्राप्त कर लेते हैं यह गुण प्राप्त कर लेने पर पदार्थ को विधुन्मय या आवेशित कहा जाता है अर्थात जिस पदार्थ में हल्की वस्तुओं को आकर्षित करने का गुण उत्पन्न होता है उसे विद्युन्मय या आवेशित कहा जाता है यदि पदार्थ में उत्पन्न हुई इस विद्युत को स्थिर रखा जाए अर्थात बहने नहीं दिया जाए तो इसे स्थिर विद्युत कहते हैं,
वहीं अगर इसे बहने के लिए सुचालक मार्ग जैसे ताम्र आदि धात्विक चालक दे दिया जाय तो हमे यह बिद्युत धारा के रूप में प्राप्त होती है
18वीं शताब्दी में बेंजामिन फ्रैंकलिन ने एक अन्य तथ्य प्रदर्शित किया कि रेशम से कांच की छड़ को रगड़ने पर कांच की छड़ में तथा रेशम में उत्पन्न विद्युत परस्पर विपरीत प्रकृति का होता है जिसे क्रमश: (+)आवेश (-)आवेश नाम दिया गया
अब आपके मन में यह प्रश्न उठ रहा होगा कि आखिर घर्षण से कोई वस्तु धनावेशित व ऋणावेशित कैसे होती है?
इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए हमें यह जानना होगा कि किसी वस्तु के धन आवेश व ऋण आवेश की स्थिति मे होने का क्या मतलब है तो आइए जानते हैं-
सबसे पहले आप को बता दें की इलेक्ट्रॉन में (-)आवेश तथा प्रोटान में (+)आवेश होता है तथा इलेक्ट्रॉन परमाणु से निकल कर चलने फिरने के लिए स्वतंत्र होता है जब की प्रोटान परमाणु के केन्द्र मे स्थिर होता है
जब कोई वस्तु धन आवेश की स्थिति में होती है तब उस वस्तु में इलेक्ट्रॉनों की कमी होती है तथा प्रोटान की अधिकता, तथा कोई वस्तु ऋण आवेश की स्थिति में होती है तब उस वस्तु में इलेक्ट्रॉनों की अधिकता होती है तथा प्रोटान की कमी, अब स्पष्ट है कि दो वस्तुओं को आपस में रगड़ने पर एक वस्तु से इलेक्ट्रॉन निकल कर दूसरी वस्तु में चले जाते हैं जिससे पहली वस्तु में इलेक्ट्रॉन की कमी होने से वह धन आवेश की स्थिति में होती है तथा दूसरी वस्तु में इलेक्ट्रॉन की अधिकता होने से वह ऋण आवेश की स्थिति में होती है
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इलेक्ट्रॉन क्या होता है? परमाणु संरचना कैसी होती है? तथा और विस्तृत जानकारी किसी अगली पोस्ट में...अपने विचार तथा सुझाव कमेंट करना ना भूलें
धन्यवाद!
Mai jab 12th me thi tab physics me ye padhne ko mila tha nice information in easy language
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंNice
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